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________________ अंग बने तो सचमुच रागात्मक प्रवृत्ति पर अंकुश लगेगा। रागात्मकता के प्रति जो अति आकर्षण बढ़ा है, चाहे वह जाति, धर्म, भाषा, प्रान्त आदि किसी भी संदर्भ में हो, उस पर एक अंकुश लगे तो निश्चय ही हमारी जीवनशैली एक शान्ति देने वाली, न्याय देने वाली, गरीब और अमीर के बीच की दीवार को मिटाने वाली शैली बनेगी । इस दृष्टि से प्रथम सूत्र बड़ा महत्त्वपूर्ण है । जीवनशैली का यहीं से प्रारंभ होता है । सम्यक् दर्शन प्रवेश द्वार है जैन जीवनशैली का । जिस व्यक्ति ने इस दरवाजे से प्रवेश किया है, उसके लिए आगे का रास्ता बहुत साफ है । उसके जीवन में सुख ही सुख होगा, उलझनें कम होंगी । प्रश्न है संघर्ष का जीवनशैली का दूसरा सूत्र है - अनेकान्त । अनेकान्त बहुत बड़ा दर्शन है । हम इस दर्शन को अपने जीवन की शैली बनाएं। पारिवारिक और सामुदायिक जीवन में अनेक व्यक्ति साथ होते हैं । ऐसे में रुचिभेद, विचारभेद, चिंतनभेद स्वाभाविक हैं । सब लोग एक रुचि वाले, एक विचार वाले और एक दृष्टि से सोचने वाले हों, यह संभव नहीं । जहां इस तरह के भेद हों, वहां टकराव और संघर्ष भी होंगे। इससे अस्वीकार नहीं किया जा सकता। प्रश्न है- क्या आदमी सदैव संघर्ष का ही जीवन जीयेगा ? सदा लड़ता-झगड़ता और मरता मारता ही रहेगा ? नहीं, ऐसे जीवन को बदला जा सकता है अनेकान्त की जीवनशैली के द्वारा । सह अस्तित्व हम निश्चित मानें- जहां अनेक हैं, वहां सहअस्तित्व भी है । साथ में रहना है, साथ में जीना है । विरोध है, किन्तु विरोध नहीं भी है, सहअस्तित्व के बीज भी उस भूमि में बोये हुए हैं। हम उन सहअस्तित्व के बीजों को अंकुरित करने का प्रयत्न करें । सहअस्तित्व के लिए आवश्यक है - एकदूसरे की भावना को समझें, एक-दूसरे के विचारों का मूल्यांकन करें। मैं अपने विचारों को सत्य मानता हूं, दूसरा अपने विचारों को सत्य मानता है । झगड़ा तब शुरू होता है, जब दूसरे के विचारों को असत्य बताया जाने लगता है। अनेकान्त ने पथदर्शन किया- 'तुम अपने विचारों को सत्य मानो, १०६ / विचार को बदलना सीखें Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003130
Book TitleVichar ko Badalna Sikhe
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2005
Total Pages194
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size8 MB
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