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आचार्य तुलसी ने भी इस स्वर को सुना, युग की भावना और उसकी नब्ज को पहचाना, पकड़ा। उन्हें लगा कि सचमुच जीवनशैली बदलनी चाहिए। किन्तु जीवनशैली कैसे बदले ? यह एक बड़ा प्रश्न है। जैन धर्म की जो जीवनशैली है, वह वीतरागता की शैली है। इस रागात्मक दुनिया में, पदार्थ
और धन के प्रति अत्यधिक आकर्षण वाली इस दुनिया में यदि कोई समाधान हो सकता है तो वह वीतरागता का समाधान है। वीतरागता की ओर जाने वाली जीवनशैली सचमुच एक समाधान है। इस सचाई को ध्यान में रख कर योगक्षेम वर्ष में जीवनशैली के नौ सूत्रों का निर्धारण किया गया। वह नौ सूत्रात्मक जीवनशैली वर्तमान की अनेक समस्याओं का समाधान देती
है।
मृत्यु-सूत्र बन रही है रागात्मकता जीवनशैली का पहला सूत्र है-सम्यक्दर्शन। मिथ्या दृष्टिकोण के कारण आज हिंसा बहुत बढ़ रही है, आतंक बढ़ा है, एक-दूसरे के प्रति संदेह बढ़ा है, विश्वास घटा है। ऐसा लगता है जीवन कहीं सुरक्षित ही नहीं है। ऐसा कोई स्थल, कोई आश्वासन आदमी खोज नहीं पा रहा है, जहां उसे सरक्षा मिलती हो। उसका हेतु है-मिथ्या दृष्टिकोण। इस मिथ्या दृष्टिकोण ने आदमी को इतना उलझा दिया है कि वह कोई निर्णय नहीं कर पा रहा है। राग संसारी प्राणी का एक जीवनसूत्र होता है, किन्तु जहां रागात्मकता सीमा पार कर जाती है, वहां वह जीवन-सूत्र न बनकर मृत्यु-सूत्र बन जाती है। आज ऐसा लगता है रागात्मकता मृत्यु का सूत्र बनती जा रही है, क्योंकि उसके सामने कोई प्रतिरोधात्मक शक्ति नहीं है। यदि कोई प्रतिरोधात्मक शक्ति हो सकती है तो वह है वीतरागता।
प्रवेश द्वार सम्यक् दर्शन वीतरागता का प्रतीक है। हमारा लक्ष्य बने वीतरागता। हमारे लक्ष्य का प्रथम सूत्रधार है वीतरागता। हमारा पथदर्शन बने वीतरागता। हमारा धर्म बने वीतरागता। देव, गुरु और धर्म-यह एक त्रिपुटी है। एक वीतरागता का प्रतिपादन करने वाला, दूसरा वीतरागता का पथदर्शक और तीसरा वीतरागता का आचरण-यह सम्यक् दर्शन हमारी जीवनशैली का
जीवनशैली के नौ सूत्र / १०५
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