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व्यसन-मुक्ति को स्वीकार कर सम्यक् आस्था के सहारे जीवन चला सकें। इस प्रकार की प्रेरणा साधर्मिक वात्सल्य का दूसरा आयाम है।
ज्ञान-दान (शिक्षा) औषध-दान (चिकित्सा) अन्न-दान (आजीविका) और अभय दान (आतंक मुक्त वातावरण)-साधर्मिक वात्सल्य के इस दान चतुष्टयात्मक व्यावहारिक प्रयोग ने दक्षिण भारत में जैनधर्म को जन-जन तक पहुंचाया था।
साधर्मिक वात्सल्य की जीवनशैली के फलित हैं१. जन-जन में अहिंसा के प्रति आकर्षण। २. जातीय सद्भाव। ३. सांप्रदायिक सद्भाव।
जीवन की शैली कैसी हो ? / १०३
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