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सम्यक् आजीविका रोटी के बिना कोई जी नहीं सकता। भिखारी होना अपराध है। शेष रहती है आजीविका। प्रत्येक गृहस्थ जीवन-यापन के लिए उसका आलंबन लेता है। अहिंसा और इच्छा-परिमाण में विश्वास करने वाले व्यक्ति में साधन-शुद्धि की चेतना जाग जाती है। वह येन-केन-प्रकारेण आजीविका नहीं करता। वह उसका सहारा लेता है, जिससे स्वयं का चरित्र विकृत न हो और समाज का चरित्र भी विकृत न बने।
सम्यक् आजीविका के फलित हैं१. व्यवसाय शुद्धि, प्रामाणिकता। २. शराब आदि मादक तथा मांस, मत्स्य, अण्डा आदि अभक्ष्य पदार्थों
के व्यापार का वर्जन। ३. तस्करी का वर्जन। ४. खाद्य पदार्थों में मिलावट का वर्जन। ५. शस्त्र के व्यवसाय का वर्जन।
६. जंगलों की कटाई का वर्जन। सम्यक् संस्कार दिशाहीन जीवन कहीं पहुंच नहीं पाता। जहां पहुंचना है, वही दिशा सही दिशा हो सकती है। पहुंचना है उस जीवन की भूमि पर, जहां समता है, संतुलन है और आत्मविजय है। प्रारंभ से ही वैसे संस्कारों का निर्माण करना जरूरी है, जो उस भूमि तक पहुंचा सके। जन्म, नामकरण, विवाह, पर्व और मृत्यु-ये विशेष प्रसंग हैं। इन प्रसंगों पर व्यक्ति की पहचान होती है और पहचान के माध्यम बनते हैं संस्कार । जैन जीवनशैली के संस्कार ऐसे हों, जो देश और काल के प्रतिकूल न हों, अनुपयोगी रूढ़ि से जकड़े हुए न हों, जिससे अंधानुकरण एवं अस्वस्थ मनोरंजन की प्रवृत्ति न हो, जो समाज की भूमि पर उत्तेजना और हिंसा के बीज बोने वाले न हों।
सम्यक् संस्कार की जीवनशैली के फलित हैं१. अभिवादन तथा पत्र-व्यवहार आदि में जय जिनेन्द्र का प्रयोग। २. गृहसज्जा आदि में जैन संस्कृति सूचक चित्र, वाक्य आदि को प्राथमिकता।
जीवन की शैली कैसी हो ? / १०१
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