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क्या तुम पसंद करोगे-कोई दूसरा आदमी तुम पर क्रोध उगलता रहे, तुम्हारे साथ अप्रिय व्यवहार करता रहे।
क्या तुम पसंद करोगे-कोई दूसरा व्यक्ति तुम्हारे श्रम का शोषण करे ?
यदि ये पसंद नहीं हैं, तो तुम भी अपनी जीवनशैली बदलो। सबको समान समझो। किसी के साथ हीनता का व्यवहार मत करो।
अपने आवेग और आवेश को संतुलित करने का अभ्यास करो। दूसरे की आजीविका में अवरोध पैदा मत करो। समण संस्कृति की जीवनशैली के फलित हैं१. मानवीय एकता। २. जातीय घृणा और छुआछूत की समाप्ति। ३. शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व। ४. संतुलित व्यवहार। ५. स्वावलम्बन का विकास।
इच्छा परिमाण पदार्थ सीमित हैं। उपभोक्ता अधिक हैं। इच्छा सबसे अधिक है। इस प्राकृतिक समस्या को सुलझाने के लिए भगवान् महावीर के इच्छा परिमाण का सूत्र दिया। व्यक्तिगत स्वामित्व न हो, यह मानवीय प्रकृति को मान्य नहीं है। व्यक्तिगत स्वामित्व असीम हो, यह स्वस्थ समाज व्यवस्था को मान्य नहीं है। मध्यम मार्ग है-इच्छा का परिमाण करो। व्यक्तिगत स्वामित्व या संग्रह की सीमा करो। व्यक्तिगत उपभोग की सीमा करो। __ इच्छा परिमाण का प्रयोग वर्तमान की आर्थिक स्पर्धा और विकास की अंधी दौड़ के लिए चुनौती है। यह कठिन है पर समस्या का समाधान
है।
इस इच्छा-परिमाण के फलित हैं१. विसर्जन, अर्जन के साथ विसर्जन। २. स्वस्थ समाज संरचना।
१०० / विचार को बदलना सीखें
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