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बहुत लाभकारी होते हैं। ध्यान के संदर्भ में डॉ. आर्निश का मत है कि
और चाहे कुछ करें या नहीं, किन्तु शरीरप्रेक्षा का प्रयोग अवश्य करें। शरीरप्रेक्षा शब्द डॉ. आर्निश का नहीं है। वे इस बात को इस तरह कहते हैं- 'ध्यान में बैठ जाएं और चित्त को रक्त-संचार की क्रिया पर टिका दें। ध्यान करें कि हमारे शरीर में ठीक से और सुचारुरूप से रक्त का संचार हो रहा है, प्रेक्षाध्यान की भाषा में इसे ही शरीर की प्रेक्षा कहा जाता है। डॉ. आर्निश इस ध्यान की क्रिया के लिए एक घंटे का समय पर्याप्त बताते
अंतर है दृष्टि का आहार का संयम, प्राणायाम, व्यायाम, यौगिक क्रिया और ध्यान-ये चार तत्त्व जिन्हें हृदयरोग नहीं हैं, उन्हें उससे बचाते हैं और जिन्हें हैं, उन्हें उससे मुक्ति दिलाते हैं। ये सारी बातें धर्मोपदेश जैसी हैं। यह विचित्र बात है-एक डॉक्टर ऐसी सलाह देता है तो व्यक्ति उसे गंभीरता से लेता है और एक धर्म का उपदेशक इन सचाइयों को प्रस्तुत करता है तो आदमी उतना ध्यान नहीं देता। उसे यह मुफ्त का सा लगता है।
अध्यापक ने छात्र से पूछा--'सूर्य के प्रकाश और बिजली के प्रकाश में क्या अन्तर है ? छात्र ने उत्तर दिया- 'मास्टरजी, अन्तर तो स्पष्ट है। सूर्य का प्रकाश मुफ्त मिलता है, जबकि बिजली के प्रकाश का बिल चुकाना पड़ता है। कोलेस्ट्रोल कैसे घटाएं ? आज ऐसा लगता है कि बिल चुकाने वाली बात को लोग जल्दी पकड़ते हैं और मुफ्त वाली बात की उपेक्षा करते हैं। डॉ. आर्निश की बात पर मुझे आश्चर्य हुआ कि अमेरिका में आज पचास लाख से ज्यादा लोग हृदयरोग से पीड़ित हैं। वहां बाईपास सर्जरी का तीस से चालीस हजार डालर का खर्च आता है। जो इसके उपचार हेतु कोलेस्ट्रोल को कम करने की दवाइयां लेते हैं, उन्हें एक वर्ष में इस पर चार या पांच हजार डालर ही खर्च करना पड़ता है।
यहां यह बात ध्यान देने योग्य है कि स्वाभाविक रूप से कोलेस्ट्रोल
६२ / विचार को बदलना सीखें
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