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________________ दिया है, इतनी होड़ और दौड़ पैदा कर दी है कि हर आदमी इस अंधी दौड़ में शामिल हो गया है। इससे समस्याएं पैदा हो रही हैं। एक दार्शनिक ने ठीक ही कहा था-'मैं इसलिए सुख से जीता हूं, क्योंकि मेरे मन में नम्बर वन बनने की मूर्खता कभी स्थान नहीं पा सकी। यह सबसे बड़ी मूर्खता है, जिसे आज आदमी पाल रहा है। लोभ अथवा आसक्ति की यह तीव्रता उसके हृदय को दुर्बल बना रही है, रोग से आक्रान्त कर रही है। श्रम का अभाव हृदयरोग का तीसरा कारण है -श्रम का अभाव। जम कर खाना खा चुकने के बाद लोग या तो खाट को तोड़ते हैं या गद्दी की शरण लेते हैं। फिर हृदयरोग नहीं होगा तो क्या होगा ? श्रम शरीर के लिए ही नहीं. हृदय के लिए भी बहुत आवश्यक होता है। श्रम को नीचा मान लिया गया, किन्तु स्वास्थ्य के लिए वह कितना आवश्यक है, इस पर चिंतन नहीं किया गया। बिना श्रम के शरीर में ठीक से रक्त-संचार नहीं हो पाता और रक्त-संचार अवरुद्ध हो जाए तो फिर हृदयरोग क्यों नहीं होगा ? रक्त-संचार की पूरी प्रणाली का केन्द्रबिन्दु हृदय ही है। जब रक्त-संचार ही बाधित हो गया तब हार्ट फेल क्यों नहीं होगा ? व्यायाम और यौगिक क्रिया डॉ. आर्निश ने श्रम के लिए दो बातें बताईं-व्यायाम और यौगिक क्रिया। व्यायाम शरीर से संबंध रखता है और यौगिक क्रियाएं मन से संबंध रखती हैं। पहले कहा जाता था जिसे हृदयरोग हो, उसे ज्यादा से ज्यादा विश्राम करना चाहिए, श्रम नहीं करना चाहिए, खाट पर लेटे रहना चाहिए। आज के डॉक्टरों ने इस मान्यता को नकार दिया है। आज कहा जा रहा है, श्रम के अभाव में हृदय की बीमारी और बढ़ जायेगी। इतनी शर्त जरूर रखी गयी है कि श्रम उतना ही करें, जिससे थकान न आए। थकान हृदयरोग में बहुत बड़ी बाधा है। थकान न हो इतना श्रम करना बहुत आवश्यक है। शरीर प्रेक्षा यौगिक क्रियाओं में कुछ हल्के आसन और प्राणायाम आते हैं। वे हृदयरोग में हृदय रोग : कारण और निवारण / ६१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003130
Book TitleVichar ko Badalna Sikhe
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2005
Total Pages194
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size8 MB
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