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________________ होता है तो आपका दिमाग स्वस्थ रहेगा, हृदय पर दबाव कम पड़ेगा। काम करने के बाद मन में यदि यह तनाव बना रहा कि यह काम बाकी रह गया, यह ठीक से नहीं हुआ, इस काम को इस तरह करते तो अच्छा होता, तो मान लीजिए-हृदय पर आपने एक असहनीय बोझ रख ही दिया। इससे हृदय पर दबाव पड़ेगा। यह मानसिक उद्वेग हृदयरोग का बहुत बड़ा कारण बनता है। जीवन की सबसे अच्छी शैली यह है कि ऐसा चिंतन उभरे-जो करना था, कर लिया। अब कोई काम बाकी नहीं है। जयाचार्य ने भिक्षु जस रसायन में लिखा है- “आचार्य भिक्षु से जब अंतिम समय में पूछा गया-'आपका शरीर कुछ अस्वस्थ-सा हो रहा है, ऐसी स्थिति में कैसा लगता है ? आचार्य भिक्षु ने उत्तर दिया- 'हरख हिये।' मेरे हृदय में तो बड़ा हर्ष है, कोई खेद नहीं है, क्योंकि उनायत कोई रही नहीं। मन में कोई न्यूनता रही नहीं। जो करना था, कर चुका, कोई काम मेरा बाकी नहीं है।" यह चिंतन रहे तो दिमाग बिल्कुल हल्का रहेगा। बोझिल दिमाग हृदय पर भी उतना ही नहीं, बल्कि उससे ज्यादा भार लाद देता है। हाथी का भार गधा कैसे झेल सकेगा ? ज्यादा भार लाद दिया जायेगा तो फिर हृदय को टूटना ही पड़ेगा। क्रोध, भय और लोभ कषाय, क्रोध, भय आदि भी हृदय को दुर्बल बनाते हैं। लोभ और ईर्ष्या भी हृदय को दुर्बल बनाते हैं। क्रोध के बारे में हम जानते हैं कि क्रोध आयेगा तो हृदय पर तुरंत असर हो जायेगा। क्रोध की मात्रा बहुत ज्यादा होती है तो कभी-कभी हार्ट-अटैक भी हो जाता है। किन्तु लोभ भी कम जिम्मेवार नहीं है। आज छोटी अवस्था में ही बहुत सारे युवक हृदयरोग के शिकार हो रहे हैं। कारण क्या है ? इसका पहला कारण है-भय का आवेग और दूसरा कारण है-लोभ का आवेग। तीसरा मानें तो वह है क्रोध का आवेग। भय भी चारों ओर से है। कानून का भय, सरकार का भय, समाज का भय, पद-प्रतिष्ठा का भय। यह भय एक संत्रास पैदा कर रहा है। लोभ भी तनाव का एक बहुत बड़ा हेतु बन रहा है। व्यक्ति सोचता है-मुझे बहुत बड़ा आदमी बनना है। पहले नम्बर का धनी बनना है, पहली पंक्ति का राजनेता बनना है। इस नम्बर वन की बात ने इतना तनाव पैदा कर ६० / विचार को बदलना सीखें Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003130
Book TitleVichar ko Badalna Sikhe
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2005
Total Pages194
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size8 MB
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