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इतना प्रियकर और स्वादिष्ट होता है कि व्यक्ति खाने का लोभ संवरण नहीं कर पाता। कोई भोज हो, विवाह-शादी का प्रसंग हो और उसमें इस तरह का भोजन न हो, यह आज संभव ही नहीं है। पहले शादी-विवाह के ऐसे आयोजन लगातार चार-पांच दिनों तक चलते थे। अब एक दिन में ही सब संपन्न हो जाते हैं, यह अच्छी बात है, किन्तु आजकल लोग एक दिन में ही कई दिनों की कसर निकाल लेते हैं। शादी-बारातों में तो
आयोजकों की तरफ से समय के अनुसार पूरी एक तालिका बनती है। यह निश्चित होता है कि कितने बजे बारातियों को क्या-क्या दिया जाए। वह तालिका इतनी समयबद्ध होती है कि खाने वाले को हाथ धोने की भी फुर्सत नहीं मिलती। खाने में भी होड़ और प्रतिस्पर्धा चलती है। परिणामस्वरूप पाचनतंत्र पर जो गुजरती है, उसकी आप कल्पना भी नहीं कर सकते।
भोजन इतना बड़ा बीमारी का कारण है, किन्तु इसी पर सबसे कम ध्यान दिया गया। आहार-संयम की बात केवल धर्म तक सीमित रही। किन्तु अब यह केवल साधना की बात नहीं है। जो व्यक्ति स्वस्थ रहना चाहता है, हृदयरोग से बचना चाहता है, उसे आहार-संयम पर उतना ही ध्यान देना होगा, जितना एक साधक को। एक हृदयरोग विशेषज्ञ कहता है-आहार का संयम करो, तो ऐसा लगता है जैसे कोई धर्म का व्यक्ति उपदेश की भाषा में किसी गृहस्थ या श्रावक को उपदेश दे रहा है। स्वास्थ्य के लिए आज वे निर्देश दिये जा रहे हैं, जो धर्म करने वाले व्यक्ति को दिये जाते हैं। इसका एक निदर्शन है-आहार-संयम। उलझनभरी जिन्दगी हृदयरोग का दूसरा हेतु है-उलझनभरी जिन्दगी। मानसिक तनाव या उद्वेग को भी हृदयरोग का मुख्य कारण माना गया है। आज हर व्यक्ति यही कहेगा-मैं बहुत व्यस्त हूं। किसी से भी पूछ लें, उत्तर यही होगा। ऐसा लगता है, जैसे खाली होना, फुर्सत में होना कोई अपमानजनक बात हो। व्यस्त होने का मतलब है हृदयरोग को निमंत्रण देना। आज आपने कोई काम शुरू किया। कुछ घण्टे बाद उठे तो आपका दिमाग इतना हल्का होना चाहिए कि उस काम से संबंधित कोई तनाव फिर मन में न रहे। यदि ऐसा
हृदय रोग : कारण और निवारण / ८६
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