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२. यौगिक क्रिया ३. ध्यान ४. सम्यक् आहार।
डॉ. आर्निश का कथन अगर इन चार बातों पर मनुष्य ध्यान दे और दवा का सीमित प्रयोग हो तो हृदय की बीमारी मिटेगी और जो रोग से आक्रान्त नहीं हैं, वे इससे बचे रहेंगे। उपरोक्त चार बातों की हम विस्तार से समीक्षा करें। इन चारों में सबसे ज्यादा बल संयत आहार पर दिया गया। कहा गया- गरिष्ठ भोजन जहर है। यह किसी आध्यात्मिक ऋषि का स्वर नहीं है, किसी संतमहात्मा की वाणी नहीं है, बल्कि एक कार्डियोलॉजिस्ट का स्वर है, जो अमेरिका का एक प्रसिद्ध डॉक्टर है। डॉ. आर्निश ने कहा-जो हृदयरोग से बचना चाहते हैं, उन्हें मांस, मछली, अण्डा और यहां तक कि दूध से बनी चीजें भी नहीं खानी चाहिए। वह चर्बी बढ़ाने वाले भोजन का सर्वथा परिहार करे। एक मुनि के लिए कहा गया-'पणीयं रसभोयणं विष तालउडं जहा- 'यह प्रणीत गरिष्ठ भोजन विष है। तालपुट जहर जैसा है। रसेसु णो गिज्जेज्झा'-मुनि रसों में गृद्ध न हो। बहुत दूध, दही, घी, मिठाइयां, चटपटी चीजें खाता ही चला जाए और हृदयरोग से बचने का स्वप्न भी देखे, ये दोनों बातें कभी संभव नहीं हैं।
चर्बीयुक्त भोजन से बचें आज लोग बहुत जल्दी बूढ़े हो रहे हैं, जल्दी मर रहे हैं। पचास वर्ष की अवस्था में कोई चला जाता है तो कहा जाता है-कोई बात नहीं, पूरी अवस्था पाकर गया है। चालीस-पचास वर्ष के बाद बूढ़ा होना स्वाभाविक माना जा रहा है। यह स्वाभाविक नहीं है। उसे और जीना चाहिए था। धारणाएं गलत बन गईं। व्यक्ति असमय में इसलिए चला गया कि भोजन दीर्घकाल तक जीने के अनुकूल नहीं था। आहार का संयम होना ही चाहिए। ऐसा आहार न लें, जिससे कोलेस्ट्रोल या वसा की मात्रा बढ़े। प्रणीत भोजन का अर्थ है-चर्बीयुक्त भोजन। कहा गया-मुनि को ऐसा भोजन नहीं करना चाहिए, जिसमें घी झरता हो। आहार का संयम करना बहुत कठिन है। वह
८८ / विचार को बदलना सीखें
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