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हृदय रोग : कारण और निवारण
'धम्मो मंगलमुक्किटुं'-धर्म उत्कृष्ट मंगल है-यह भगवान् महावीर की वाणी है। प्रश्न है-धर्म को उत्कृष्ट मंगल क्यों कहा गया ? क्या विशेषता है इसमें ? यदि इस प्रश्न की गहराई से मीमांसा करें तो पता चलेगा कि धर्म आत्मा की शुद्धि करता है, साथ ही साथ व्यावहारिक वातावरण को भी पवित्र बनाता है, शरीर को भी स्वस्थ बनाता है। यह बात आज इस वैज्ञानिक युग में स्पष्ट होती जा रही है।
बदल गए हैं संदर्भ प्राचीनकाल में कहा जाता था-'धर्म करो, स्वर्ग और मोक्ष मिलेगा, अधर्म करोगे तो नरक में जाओगे।' उस समय स्वर्ग और नरक के आधार पर धर्म की व्याख्या की गयी। किन्तु इस वैज्ञानिक युग में स्वर्ग और नरक के आधार पर व्याख्या कोई अर्थ नहीं रखती। अब व्याख्या का अर्थ और प्रकार-दोनों बदल गया है। आज किसी व्यक्ति से कहा जाए, तुम धर्म करो, स्वर्ग में जाओगे तो उसे विश्वास ही नहीं होगा। वह सोचेगा-आज के जीवन में इतनी सुख-सुविधाएं हैं कि इनसे ज्यादा स्वर्ग में और क्या मिलेगा ? कहा जाए-'नरक में जाना चाहोगे ? वह कहेगा-नरक जाने में बुरा ही क्या है। नरक में जाऊंगा तो उसे भी स्वर्ग बना दूंगा। नरक में मित्र भी तो साथ में होंगे, फिर चिंता किस बात की है ?
__ स्वर्ग और नरक से संबंधित बातें आज बहुत कारगर नहीं होती। आज धर्म को समझने के लिए हमारा दृष्टिकोण भी वैज्ञानिक होना चाहिए। धर्म उत्कृष्ट मंगल है, किन्तु कौन-सा धर्म ? बताया गया-वह धर्म उत्कृष्ट मंगल है, जिसके अहिंसा, संयम और तप-ये तीन लक्षण हैं। इन तीन के आधार पर हम शरीर की व्याख्या करें, शरीर में होने ८६ / विचार को बदलना सीखें
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