SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 153
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वर्ग, बोल १० / १५१ १०. सांव्यवहारिक प्रत्यक्ष के चार प्रकार हैं१. अवग्रह ३. अवाय २. ईहा ४. धारणा दसवें बोल में सांव्यवहारिक प्रत्यक्ष श्रुतनिश्रित मति के चार प्रकार बतलाए गए हैं-अवग्रह, ईहा, अवाय और धारणा। प्रत्यक्ष के ये चारों प्रकार इन्द्रिय और मन से सापेक्ष होने के कारण परोक्ष होने पर भी स्पष्टता के कारण प्रत्यक्ष ज्ञान की श्रेणी में परिगणित हो गए। अवग्रह . इन्द्रिय और पदार्थ के संबंध रूप योग होने पर अस्तित्व मात्र का आभास होता है, इसे दर्शन कहा जाता है। दर्शन के बाद सामान्य रूप से पदार्थ के ग्रहण का नाम अवग्रह है । इसके दो भेद हैं—व्यंजनावग्रह और अर्थावग्रह । व्यंजनावग्रह में पदार्थ का अव्यक्त बोध होता है । अर्थावग्रह में वह कुछ व्यक्त हो जाता है। ईहा ईहा का अर्थ है वितर्क । जिस समय जिज्ञासु व्यक्ति या पदार्थ के अस्तित्व को स्वीकारने से पहले उसके स्वरूप-निर्धारण में उत्पन्न संदेहों का निराकरण कर संभावनात्मक स्थिति तक पहुंचता है कि यह अमुक व्यक्ति या अमुक पदार्थ होना चाहिए। इस वितर्कमूलक अवधारणा को ईहा कहा जाता है। अवाय यह निर्णयात्मक ज्ञान है । इसमें न संदेह रहता है और न संभावना । किसी निश्चित प्रमाण के आधार पर यह जानना कि यह अमुक व्यक्ति ही है, अमुक पदार्थ ही है-इस प्रकार का अवधारणात्मक ज्ञान अवाय कहलाता है। धारणा ___अवाय के द्वारा गृहीत अवबोध चेतना के किसी तल पर इतनी गहराई से प्रतिबिम्बित हो जाता है कि वह स्मृति के वातायन से ओझल नहीं हो पाता, उसे धारणा कहते हैं। धारणा शब्द का शाब्दिक अर्थ भी यही है कि जिसे धारण करके रखा जा सके, जो संस्कारों के गहरे में उतर जाए, जो चित्त की वासना के रूप मे सुरक्षित रह जाए, वह धारणा है । यह हमारे स्मृतिकोष को समृद्ध बनाए रखता है। जिसका धारणाबल पुष्ट नहीं होता, उसका स्मृति-कोष भी क्षीण होने लगता है। अवग्रह, ईहा, अवाय और धारणा—ये चारों एक साथ भी हो सकते हैं तथा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003129
Book TitleJain Tattvavidya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2008
Total Pages208
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, M000, & M015
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy