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________________ २५. श्रमण धर्म के दस प्रकार हैं १. क्षान्ति २. मुक्ति ३. आर्जव ४. मार्टव ६. सत्य ७. संयम ८. तप ९. त्याग ५. लाघव १०. ब्रह्मचर्य पच्चीसवें बोल में दस प्रकार के श्रमण धर्मों का उल्लेख है— धर्म के ये प्रकार साधु के लिए ही हैं, गृहस्थ के लिए नहीं, ऐसी कोई नियामकता नहीं है । एक गृहस्थ भी इन धर्मों की सघन साधना करने का अधिकारी है। फिर भी श्रमण धर्म के रूप में इनका उल्लेख इस बात का प्रतीक है कि साधु बनने वाले को तो इन धर्मों का विकास करना ही है । क्षान्ति वर्ग ३, बोल २५ / १३५ सहिष्णुता - किसी प्रकार की प्रतिकूल परिस्थिति उपस्थित होने पर उसे सहज भाव से सहन करने, उत्तेजित होने का अवसर आने पर भी शांत रहने और सामने वाले व्यक्ति की दुर्बलताओं को स्नेह की धारा में विलीन करने की क्षमता । मुक्ति निर्लोभता - शरीर और पदार्थ जगत के प्रति अनासक्ति । आर्जव सरलता — माया, छलना आदि से उपरति । मन के उस प्रकाश की साधना, जहां छिपाव और दुराव स्वयं ही समाप्त हो जाते हैं । मार्दव Jain Education International कोमलता - मन, वाणी आदि के कठोर व्यवहार का विसर्जन । स्नायविक, मानसिक और बौद्धिक तनाव से मुक्ति । सत्य जो तत्त्व जैसा है, उसको उसी रूप में समझना और उसका उसी रूप में कथन करना । आग्रह सत्य में सबसे बड़ी बाधा है । आग्रह अज्ञानजनित हो सकता है, मोहजनित हो सकता है और संस्कारजनित भी हो सकता है । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003129
Book TitleJain Tattvavidya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2008
Total Pages208
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, M000, & M015
File Size8 MB
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