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________________ वर्ग ३, बोल ११ / ११५ ११. दृष्टि के तीन प्रकार हैं१. सम्यक् दृष्टि ३. सम्यक्-मिथ्या दृष्टि २. मिथ्या दृष्टि मोहनीय कर्म के विलय से जो आत्म-गुण प्रकट होते हैं, उनमें प्रमुख दो सम्यक्त्व और चारित्र । चारित्र-मोह के विलय से चारित्र की उपलब्धि होती है और दर्शन-मोह के विलय से सम्यक्त्व प्राप्त होता है। विलय तीन प्रकार का होता है १. उपशम, २. क्षय, ३. क्षयोपशम । उपशम और क्षय की परिणति एक समान है। पर तत्त्वतः इनमें बड़ा अन्तर है। उपशम में मोह कर्म की प्रकृतियां दबती हैं, निमित्त पाकर उनमें फिर उभार आ जाता है। क्षय में उन प्रकृतियों का सर्वथा विलय हो जाता है । क्षयोपशम उन दोनों से भिन्न है। इसमें न तो कर्मों का सर्वथा विलय होता है और न ही होता है उपशम । इसमें कर्मों का हल्कापन होता है अर्थात् विपाक रूप में उनका वेदन नहीं होता । दर्शनमोहनीय कर्म और अनन्तानुबन्धी क्रोध, मान, माया तथा लोभ के क्षय, उपशम और क्षयोपशम से जो सम्यक्त्व उपलब्ध होता है, वह क्रमशः क्षायिक सम्यक्त्व, औपशमिक सम्यक्त्व और क्षायोपशमिक सम्यक्त्व कहलाता है । सम्यक्त्व को दर्शन या दृष्टि भी कहा जाता है। जीव-अजीव आदि सभी तत्त्वों का यथार्थ ग्रहण करने वाली दृष्टि सम्यक् दृष्टि है। यह दृष्टि जिसे प्राप्त होती है, वह व्यक्ति भी सम्यक् दृष्टि कहलाता है। __सम्यक् दृष्टि जिस व्यक्ति को उपलब्ध हो जाती है, उसे मोक्ष गमन का आरक्षण-पत्र उपलब्ध हो जाता है—देर-सबेर उसकी मुक्ति होनी ही है। शास्त्रों में कहा है कि एक बार सम्यक्त्व का स्पर्श हो जाने पर कुछ कम अर्धपुद्गलपरावर्तन की समयावधि में मुक्त होना निश्चित है । जब तक वह मुक्त नहीं होता है और सम्यक् दृष्टि रूप से संसार में रहता है, तब तक प्रशस्त गतियों और कुलों में उत्पन्न होता है। इस अर्थ में यह कहा जा सकता है कि सम्यक्त्व आत्मविकास की सुदृढ़ पृष्ठभूमि है। इस पर आरूढ़ होकर ही आत्मा पूर्ण विकास की स्थिति तक पहुंच सकती है। जो दृष्टि जीव, अजीव आदि तत्त्वों का अयथार्थ ग्रहण करती है; वह मिथ्यादृष्टि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003129
Book TitleJain Tattvavidya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2008
Total Pages208
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, M000, & M015
File Size8 MB
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