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वर्ग:, बोल ४ / १०५ लयन पुण्य
संयमी पुरुष को दिये जाने वाले मकान के निमित्त से होने वाला शुभ कर्म लयन पुण्य है। शयन पुण्य
संयमी पुरुष को दिये जाने वाले पाट-बाजोट आदि के निमित्त से होने वाला शुभ कर्म शयन पुण्य है। वस्त्र पुण्य
संयमी पुरुष को दिये जाने वाले वस्त्र के निमित्त से होने वाला शुभ कर्म वस्त्र पुण्य है। मन पुण्य ___मन की शुभ प्रवृत्ति से होने वाला शुभ कर्म मन पुण्य है। वचन पुण्य
वचन की शुभ प्रवृत्ति से होने वाला शुभ कर्म वचन पुण्य है। काय पुण्य
शरीर की शुभ प्रवृत्ति से होने वाला शुभ कर्म काय पुण्य है। नमस्कार पुण्य
पंच परमेष्ठी को किए जाने वाले नमस्कार के निमित्त से होने वाला शुभ कर्म नमस्कार पुण्य है।
पुण्य का बन्ध सत्प्रवृत्ति से होता है । सत्प्रवृत्ति मोक्ष का उपाय है । जो मोक्ष का उपाय है, वह धर्म है। इसका फलित यह हुआ—जहां धर्म है, वहां पुण्य का बन्ध है। धार्मिक प्रवृत्ति के साथ ही पुण्य का बन्ध होता है। जिस प्रवृत्ति में धर्म नहीं, उसके साथ पुण्य का अनुबन्ध नहीं है। पुण्य-प्राप्ति के लिए धार्मिक प्रवृत्ति करना वर्जित है। पर पुण्य होगा तो धर्म के साथ ही होगा। करना नहीं पड़ेगा, वह सहज रूप में होगा। उसके लिए स्वतन्त्र रूप से किसी प्रवृत्ति की अपेक्षा नहीं है। जिस प्रकार अनाज के साथ भूसा होता है, उसी प्रकार धर्म के साथ पुण्य होता है। भूसे की स्वतन्त्र खेती या उत्पत्ति नहीं होती, इसी प्रकार पुण्य का स्वतन्त्र बंध नहीं होता।
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