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८. संगठन का आधार
ऐक्य और संगठन
ईराक में सैनिक क्रांति हुई। प्रधानमंत्री शाह और युवराज को मार दिया गया। राजतंत्र गणतंत्र के रूप में बदल गया। इस खूनी क्रान्ति का कारण क्या है ? सरकार और जनता का विचार-भेद । जनता का झुकाव स्वतंत्रता की ओर था और शासक-वर्ग उसे किसी दूसरे पक्ष की ओर घसीटना चाहता था। विचार-विभेद की तीव्रतम प्रतिक्रिया खूनी क्रांति के रूप में सामने आई।
विचारों के विभेद से परस्पर खाई पड़ जाती है। उसके अभाव में संगठन स्थायी नहीं रह सकता। अतः संगठन की स्थिरता के लिए विचारों का ऐक्य नितान्त आवश्यक है। बिना ऐक्य के केवल संगठन करना बाल की नींव पर मकान खड़ा करना है।
विचार-भेद का एक प्रमुख कारण आचार-भेद है। दो शताब्दी पहले की बात है। महापुरुष भिक्षु स्वामी ने एकता के आधार/बल पर एक संगठन खड़ा किया। उसे 'तेरापंथ' के रूप में पहचान मिली उसके सभी सदस्यों की एक आचार-क्रिया है। तत्त्व-दर्शन भी एक है। तत्त्व-निर्णय में संगठन के आचार्य का निर्णय सर्वमान्य होता है । आचार्य की ध्वनि ही सभी सदस्यों में प्रतिध्वनित होती है । इसी एकता के आधार पर आज भी वह गौरव के साथ अपने पैरों पर खड़ा है। जहां यह ऐक्य नहीं होता, वहां कोई भी संगठन चल नहीं सकता, लड़खड़ाने लग जाता है, चाहे वह किसी भी क्षेत्र में क्यों न हो। जरूरी है स्वार्थ का त्याग
विचार-भेद का दूसरा प्रमुख कारण स्वार्थ है । स्वार्थों की टक्कर में फिर वह सब कुछ होता है, जो नहीं होना चाहिए। राजस्थान के उच्च न्यायालय की शाखा को जयपुर से हटाया गया कि वकीलों के विरोध ने उग्र रूप ले लिया। प्रदर्शन किया गया। उसे रोकने के लिए पुलिस को अश्रुगैस छोड़नी पड़ी । यह क्या है ? स्वार्थ की थोड़ी-सी चोट लगे और मनुष्य इतना असंयत हो जाए ! आखिर स्वार्थ की भी कोई सीमा होती होगी। स्वार्थ के
संगठन का आधार
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