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पारिभाषिक शब्द - कोश
अकषाय संवर - आत्मा का राग-द्वेषात्मक उत्ताप ( क्रोध, मान आदि) कषाय है । कषाय का सर्वथा अभाव अकषाय संवर है । यह ग्यारहवें गुणस्थान से चौदहवें गुणस्थान तक होता है । देखें - गुणस्थान । अकाम निर्जरा -- मोक्ष प्राप्ति के उद्देश्य से की जानेवाली निर्जरा के अतिरिक्त निर्जरा अकामनिर्जरा है । देखें - निर्जरा, सकाम निर्जरा | अध्यवसाय - चेतना का एक अति सूक्ष्म स्तर । अनशन - अन्न, पानी, खाद्य (मेवा आदि) और स्वाद्य ( लंवग आदि ) - --इन चारों प्रकार के आहार को त्यागना अनशन है । वह दो प्रकार का होता है - इत्वरिक और यावत्कथिक । उपवास से लेकर छह मास तक की तपस्या इत्वरिक है । आमरण तपस्या को यावत्कथिक कहा जाता है । अनशन के तीन भेद भी हैं - (१) भक्तप्रत्याख्यान (२) इंगिनीमरण ( ३ ) प्रायोपगमन |
अप्रमाद संवर - अध्यात्म के प्रति आंतरिक अनुत्साह प्रमाद है । इस प्रमाद का सर्वथा अभाव अर्थात् अध्यात्म के प्रति सम्पूर्ण जागरूकता अप्रमाद संवर है । इस भूमिका में प्राणी कोई पापकारी प्रवृत्ति नहीं करता । यह संवर सातवें गुणस्थान से चौदहवें गुणस्थान तक होता है । देखेंगुणस्थान |
अभव्य - मोक्ष जाने की अर्हता से सम्पन्न प्राणी भव्य कहलाते हैं । इससे विपरीत जिन प्राणियों में यह अर्हता नहीं है, वे अभव्य हैं । भव्यत्वअभव्यत्व की यह स्थिति किसी कर्म का क्षय, क्षयोपशम, उपशम और उदय नहीं, अपितु अनादि पारिणामिक भाव है । इसलिए कोई भी भव्य प्राणी त्रिकाल में कभी अभव्य नहीं होता और अभव्य कभी भव्य नहीं होता ।
अयोग संवर - योग का अर्थ है - शरीर, वाणी और मन की प्रवृत्ति । प्रवृत्ति दो प्रकार की होती है - शुभ और अशुभ । अशुभ प्रवृत्ति का सम्पूर्ण निरोध व्रत संवर तथा शुभ प्रवृत्ति का सम्पूर्ण निरोध अयोग संवर है । यह आत्मा की शैलेषी अप्रकम्प अवस्था है । यह चौदहवें गुणस्थान में प्राप्त होती है ।
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