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नारे तो आज बहुत लगते हैं, पर तदनुरूप आचरण कम होता है । कहनी
और करनी की इस विषमता को आज पाटने की नितान्त आवश्यकता है। कहने के पीछे हृदय की निष्ठा होनी चाहिए। वह निष्ठा कहने के पूर्व स्वयं के जीवन में उतरने से आती है। इसलिए कहने के पूर्व आचरण की भूमिका होनी चाहिए। यह एक निर्विवाद तथ्य है कि आचरित धर्म का उपदेश ही दूसरों के लिए प्रेरणादायी होता है । अतः आज कहने के बजाय करने का समय है। अणवत-आंदोलन जीवंत धर्म का आंदोलन है। उसके व्रत प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में आने चाहिए। नैतिक क्रांति की सही दिशा में यह एक आवश्यक कदम है। इसलिए सबको इस ओर अग्रसर होने का मानसिक संकल्प करना चाहिए।
मानवता मुसकाए
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