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________________ यह दृश्य देख रहा था । सब लोगों के चले जाने के बाद वह वहां आया और सारे लोटों को निकाल कर चलता बना । जैसा कि मैंने कहा, जन-सामान्य अनुकरणप्रिय होता है । चूंकि समाज में प्रमुख / अग्रगण्य लोगों का एक सहज प्रभाव होता है, इसलिए वे जैसा आचरण और व्यवहार करते हैं, उसका अनायास अनुकरण होने लगता है । इस परिप्रेक्ष्य में आज यह अत्यंत आवश्यक है कि अग्रगण्य आगे आएं और युग को नया मोड़ दें। शिविरों के आयोजन का भी यही उद्देश्य रहता है कि कुछ लोग स्वस्थ जीवन शैली को जीते हुए दूसरों का पथ-दर्शन करें। मैं मानता हूं कि इस नए मोड़ में अणुव्रतियों को अपनी सुख-सुविधाओं का त्याग करना होगा । उन्हें चालू ढर्रे को छोड़ना होगा । एक अपेक्षा से यह कांटों का मार्ग है । वे ही व्यक्ति इस पथ पर आ सकेंगे, जो कष्ट सहन करने की हिम्मत रखते हैं । आप को ख्याल रहना चाहिए कि जो चीज कष्ट से प्राप्त की जाती है, वह स्थित रहती है । कहा भी गया है'कष्टेनासादितो वित्तं, आपत्तौ नैव नश्यति ।' - जो चीज कष्ट से प्राप्त की जाती है, वह कष्ट के समय भी काम आती है । इसके विपरीत जो चीज सीधी प्राप्त हो जाती है, वह कष्ट के समय नष्ट हो जाती है । जो व्यक्ति परिश्रम से धन कमाता है, वह उसके मूल्य को समझता है । अत: वह उसका दुरुपयोग नहीं करेगा । पर जो व्यक्ति सट्टे में कमाता है, उसका धन प्रायः ही चला जाता है । इसलिए जो आनन्द सुख-सुविधाओं को छोड़ने से मिलता है, उसे हमें लेना है । यही अहिंसा का मार्ग है । कार्यकर्ताओं की जीवन-दिशा कार्यकर्ताओं पर दोहरी जिम्मेवारी है । पहले वे स्वयं सुधरें और फिर दूसरे लोगों को सुधारने की चेष्टा करें । उनमें बड़प्पन की भूख नहीं होनी चाहिए। वे आज के राजनेताओं की तरह पदलिप्सु न बनें । दलबंदी से भी वे सलक्ष्य बचें । एक वाक्य में कहा जाए तो संयमी, श्रद्धालु और तपोनिष्ठ कार्यकर्ता ही युग को मोड़ दे सकते हैं । कुछ लोग कहते हैं कि इस प्रकार कार्य होने वाला नही हैं। पर मैं निराश नहीं हूं । आज की परिस्थिति को हमारे कार्य की भूख है और हम लोग कार्य करने को तैयार हैं, तब फिर कार्य होगा क्यों नहीं । कार्यकर्ताओं से भी कहना चाहता हूं कि निराशा / हताशा को वे कभी अपने पास ही फटकने न दें। बस, दृढ निष्ठा, मजदूत संकल्प और निष्काम भाव से कार्य करते रहें । निश्चित ही उन्हें बहुत तोष मिलेगा । १८४ Jain Education International For Private & Personal Use Only मानवता मुसकाए www.jainelibrary.org
SR No.003128
Book TitleManavta Muskaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages268
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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