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________________ १. साधुत्व का सार उपशम का मूल्य 'उवसम सारं खु सामण्णं' यह आगम का एक सूक्त है। इसका अर्थ है.-साधुत्व का सार है उपशम । दूसरे शब्दों में अक्रोध । जिसने इस उपशम की बात नहीं सीखी, तो मानना चाहिए कि एक अपेक्षा से उसने साधुत्व को नहीं समझा, कुछ भी नहीं सीखा। जिस प्रकार बिना अनुपान के दवा काम नहीं करती, उसी प्रकार बिना उपशम के दीर्घकालिक साधना भी फलदायी नहीं बनती। इससे भी आगे भगवान महावीर ने तो यहां तक कहा है'जिसमें उपशम नहीं है-उत्कृष्ट/तीव्र क्रोध है, उसमें साधुत्व ही नहीं है।' इस एक ही बात से आप समझ सकते हैं कि उपशम को, अक्रोध को कितना महत्त्व दिया गया है। अक्रोध की साधना प्रश्न है, क्रोध पर विजय कैसे पाई जाए ? इसके समाधान में कुछ लोग कहते हैं--क्रोध आए तब मौन रखना चाहिए। इसी प्रकार कुछ लोग कहते हैं कि उस समय किसी मंत्र का जाप शुरू कर देना चाहिए। बातें अच्छी हैं, पर कठिनाई तो यह है कि जिस क्षण क्रोध आता है, तब ये बातें लगभग याद नहीं रहतीं। इस संदर्भ में मैंने जो समाधान सोचा है, वह यह है कि जिस-किसी दिन क्रोध आ जाए, उसके दूसरे दिन नमक छोड़ देना चाहिए। इससे थोड़े ही समय में क्रोध अपने-आप शांत हो सकता है। मैंने इसका प्रयोग भी किया है। एक बहिन मेरे पास आई और बोली'महाराज ! मुझे क्रोध बहुत आता है। कृपया आप मुझे कोई ऐसा उपाय बताएं, जिससे मैं इससे बच सकें।' बहिन के निवेदन पर मैंने उसे उपरोक्त उपाय सुझाया । दूसरे दिन बहिन पुन: उपस्थित हुई और कृतज्ञता के स्वर में भाव-विभोर होकर बोली-'महाराज ! आपने तो मेरा कल्याण कर दिया। कल दिनभर मुझे ख्याल रहा-कहीं क्रोध न आ जाए, कहीं क्रोध न आ जाए, ..."। यदि एक बार भी क्रोध आ गया तो कल नमक छोड़ना पड़ेगा। इसका परिणाम यह आया कि पूरे दिन में एक बार भी क्रोध नहीं साधुत्व का सार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003128
Book TitleManavta Muskaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages268
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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