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साधना है। धर्म संसार-समुद्र में गिरते प्राणी को धारण कर रखने वाला तत्व है। आप अपने दिलो-दिमाग में अच्छी तरह से अंकित कर लें कि धन से कभी भी धर्म नहीं होता। धन से सुख-सुविधा के साधन अवश्य उपलब्ध हो सकते हैं, पर धर्म से उसका कोई सीधा सम्बन्ध नहीं है। प्रश्न होगा, धन से धर्म नहीं होता तो फिर किससे होता है ? धर्म होता है तपस्या से, त्याग से, संयम से। लोग कहते हैं-धर्म इसलिए करना चाहिए कि उससे परलोक सुधरेगा। मैं भी मानता हूं कि धर्म से परलोक सुधरता है, पर साथ ही यह भी मानता हूं कि वर्तमान जीवन को बिगाड़कर परलोक कभी नहीं सुधारा जा सकता। यह निरी भ्रांति है। इसलिए वर्तमान को बिगाड़कर परलोक सुधारने वालो धर्म मेरी दृष्टि में बासी धर्म है, उधार धर्म है। ऐसा तथाकथित धर्म हमारे किस काम का । हमें तो नगद धर्म चाहिए। जब भी उस धर्म की आराधना करें, हमारा सुधार हो, हमें शान्ति की अनुभूति हो, आनन्द की प्राप्ति हो । और वह नकद धर्म है-जीवन में विचार और आचार की पवित्रता । तपस्या, त्याग, संयम और दुष्प्रवृत्तियों से विरति । ऐसे धर्म से परलोक तो सुधरेगा-ही-सुधरेगा। इसमें संदेह करने की कहीं कोई गुंजाइश ही नहीं है। नगद धर्म का संदेश
मैं देख रहा हूं कि आज का मानव संयम को भूलता जा रहा है। न हाथ का संयम है और न पांव का। न आंख, कान, नाक का संयम है
और न खाने-पीने का । न वाणी का संयम और न मन का ही। सार-संक्षेप यह कि वह सब तरह से संयमहीन होता जा रहा है। इस स्थिति में उस पर स्वार्थ प्रभावी हो रहा है। घर की गन्दगी वह पड़ोसी के घर के सामने डाल देता है । वह यह नहीं सोचता, जब गन्दगी से मेरे घर में दुर्गन्ध फैल रही थी तो क्या पड़ोसी के घर में नहीं फैलेगी। उससे पैदा होने वाले मच्छर क्या उसे नहीं काटेंगे। नकद धर्म का संदेश यह है कि अपनी शारीरिक, वाचिक और मानसिक किसी भी प्रवृत्ति से किसी दूसरे का अहित मत करो, उसे कष्ट मत पहुंचाओ। अपने सुख के लिए दूसरे के सुख की होली मत जलाओ। तुम किसी को जिला सको, यह शक्य नहीं, पर उसे मारो तो मत। अपने छोटे-से स्वार्थ के लिए औरों का शोषण मत करो। माया, कपट, प्रवंचना, धोखा, बेईमानी और कुटिलता को आज होशियारी, चतुराई और व्यापारकला का जामा पहना दिया गया है। पर ये ऐसे दुर्गुण हैं, जो जीवन-सत्व 'को घुण' की तरह खत्म करने वाले हैं। इनसे सलक्ष्य दूर रहते हुए अपनी पवित्रता को सुरक्षित रखो।
अणुव्रत-आन्दोलन नकद धर्म का व्यावहारिक रूप है। वह कहता
नकद धर्म
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