SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 91
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ७६ जैन दर्शन और विज्ञान भारत में भी यंत्र-तंत्र इसके विशेषज्ञ मिलते हैआयुर्वेद का एक प्रसिद्ध श्लोक है-- दन्तानामञ्जनं श्रेष्ठ, कर्णानां दन्तधावनम् । शिरोभ्यंगश्च पादानां, पादाभ्यंगश्च चक्षुषोः ।। आंखों को आंजने से दांत स्वस्थ रहते हैं। दांतों को धोने से कान स्वस्थ रहते हैं। सिर पर मालिश करने से पैरों को लाभ होता है और पैरों पर मालिश करने से आंखो की ज्योति बढ़ती है। इस प्रकार शरीर में सैकड़ों केन्द्र हैं, जिनको जानना बहुत लाभप्रद होता है। उनमें हाथ-पैर बहुत महत्त्वपूर्ण हैं। हम विद्युत्-विज्ञान की दुष्टि से भी देखें। आज का शरीरशास्त्री मानता है कि शरीर की विद्युत् का बहि:निष्क्रमण मुख्यत: तीन स्थानों से होता है-हाथ की अंगुलियों से, पैरों की अंगुलियों से और आंखो से। जब शरीर रोग-ग्रस्त होता है तब रोग-ग्रस्त भाग पर अंगुलियां घुमाई जाती हैं। उससे विद्युत् मिलती है और रोग शांत भी होता है। गुरु लाभ के चरणों में मस्तक रखने से उनके पैरों से निकलने वाली विद्युत् का लाभ मिलता है। जब वे अपना हाथ भक्त के सिर पर रखते हैं तब अंगुलियों से निकलने वाली विद्युत् भी मिलती है और जब वे शांत आंखों से भक्त को देखते हैं तब आंखों से निकलने वाली विद्युत् भी प्राप्त होती है। मन तीनों ओर से लाभान्वित होता है। यह भी एक विज्ञान है। जो चैतन्य-केन्द्र मस्तिष्क में हैं, वे हाथ में भी हैं। भावना के सभी केन्द्र हाथ में हैं। जिन व्यक्तियों का ध्यान नहीं टिकता उनके लिए बताया गया है कि वे दाहिने पैर के अंगूठे पर ध्यान करें। ध्यान सधने लगेगा। यह है पैर का संयम । यह आचार-शास्त्र का बहुत बड़ा अंग है। यह तो नहीं कहा कि पूरे शरीर का संयम करो। हाथ-पैर के संयम की बात कही, इसका हमें आचारशास्त्रीय दृष्टि से भी महत्त्व आंकना चाहिए। आचारशास्त्रीय दृष्टि से संयम तब होता है, जब हम हाथ-पैर को स्थिर रख सकें, लंबे समय तक रख सके। जो व्यक्ति उकडू आसन में बैठता है, वह पैरों का संयम साधता है। सकी आध्यात्मिक शक्तियां जागती हैं। उसमें ब्रह्मचर्य की शक्ति का विकास होता है। यह है आचारशास्त्रीय दृष्टिकोण। तीसरा है गणितशास्त्रीय दृष्टिकोण। हाथ और पैर का गणित करना होगा। दोनों हाथों की दस अंगुलियां। दोनों पैरों की दस अंगुलियां। उन पर बनी रेखाओं का गणित, हाथ और पैरों की रेखाओं का गणित और मूल्यांकन । पुराने जमाने में तर्कशास्त्र पढ़ा जाता था सूत्रों के आधार पर और आज Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003127
Book TitleJain Darshan aur Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni, Jethalal S Zaveri
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2008
Total Pages358
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Science
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy