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जैन दर्शन और विज्ञान के प्रमुख अंशों का निर्माण प्राय: अशक्य-सा बन जाता है।''१ हाइजनबर्ग के इस कथन का तात्पर्य यही होता है कि विज्ञान-सम्मत दार्शनिक विचारधारा आत्मा की वास्तविकता को स्वीकार करती है।
इस प्रकार देखा जा सकता है कि विश्व क्या है?' की प्रहेलिका का विज्ञान-सम्मत हल निकालने में अब तक सभी वैज्ञानिक एकमत नहीं हो पाए हैं। जैन दर्शन की विचारधारा और उसके आलोक में की गई समीक्षा के आधार पर कहा जा सकता है कि जैन दर्शन के अनेकतत्त्वात्मक वास्तविकतावाद प्रस्तुत प्रहेलिका का विज्ञान-सम्मत हल निकालने में मार्ग-दर्शक बन सकता है। जैन दर्शन अध्यात्मवादी दर्शन है, फिर भी दार्शनिक आदर्शवाद से सहमत नहीं हैं। तत्त्व-मीमांसा के दृष्टिकोण में पुद्गल और जीव; दोनों के अस्तित्व का समान मूल्य है। अत: भौतिकवाद और आदर्शवाद के बीच की खाई को पाटने के लिए जैन दर्शन का तत्त्व-मैमासिक दृष्टिकोण बहुत उपयोगी हो सकता है। जैन दर्शन द्वारा प्रतिपादित सत् (वास्तविकता) की परिभाषा द्रव्य, गुण, पर्याय का निरूपण, पांच अस्तिकायों का स्वरूप आदि तथ्य अनेकतत्त्वात्मक वास्तविकतावाद के समक्ष उपस्थित होने वाली तर्कों का समाधान दे सकते हैं।
अभ्यास १. दर्शन और विज्ञान के मूलभूत अन्तर को समझाते हुए इनकी निकटता को
स्पष्ट करें। दर्शन और विज्ञान का तुलनात्मक अध्ययन क्यों जरूरी है। आधुनिक विज्ञान के दर्शन को विभिन्न वैज्ञानिकों द्वारा किस प्रकार प्रस्तुत किया गया है? जैन दर्शन के साथ निम्नलिखित आधुनिक वैज्ञानिकों के दर्शन की तुलना करें(क) एडिंग्टन (ख) जेम्स जीन्स
(ग) हाइजनबर्ग ५. जैन दर्शन द्वारा भौतिकवाद के वैज्ञानिक दर्शन का निराकरण किस प्रकार
किया जा सकता है? ६. वैज्ञानिकों विभिन्न दर्शन के संदर्भ में जैन दर्शन का मूल्यांकन करें।
१. फिजिक्स एण्ड फिलोसोफी, पृ० १७२ ।
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