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________________ ४० जैन दर्शन और विज्ञान वादी वैज्ञानिक केवल भूत को ही विश्व की चरम वास्तविकता बताते हैं। दोनों पक्षों के वैज्ञानिक अपनी विचारधारा को विज्ञान-सम्मत सिद्ध करने का प्रयत्न करते हैं। वैज्ञानिकों के इस दार्शनिक विवाद के पीछे राजनीति का भी प्रभाव, ऐसा लगता है। साम्यवादी नेताओं को जब पता चला कि कुछ वैज्ञानिक आधुनिक भौतिक विज्ञान के आदर्शवाद की विचारधारा के पक्ष में बताते हैं, तो उन्हें बड़ी चिंता हुई। वे इस प्रयत्न में लगे कि 'भौतिकवाद' को ही वैज्ञानिक दर्शन का स्थान प्राप्त हो। लेनिन ने ठेठ ई. १९०८ में लिखा था-“सामान्य विज्ञान के क्षेत्र में एवं भौतिक विज्ञान के क्षेत्र में भी वैज्ञानिकों का विशाल बहुमत भौतिकवाद के पक्ष में है। बहुत ही अल्पसंख्या में कुछ एक आधुनिक भौतिक विज्ञानवेत्ता आदर्शवाद के चक्कर में पड़ गए हैं। यह नया आदर्शवादी भौतिक विज्ञान जो अभी-अभी प्रचारित हो रहा है, केवल प्रतिक्रियात्मक और अस्थाई है..............।''२ लेनिन के इस विचार की प्रतिक्रियारूप ही संभवत: एडिंग्टन, जीन्स आदि वैज्ञानिकों ने ईश्वर के अस्तित्व को ओर भौतिक पदार्थों के ज्ञाता-सापेक्ष अस्तित्व को वैज्ञानिक सिद्धांतों के रूप में प्रतिष्ठित करने का प्रयत्न किया। इस प्रकार एक और आदर्शवाद को तो दूसरी ओर भौतिकवाद को विज्ञान-सम्मत बताने के प्रयत्न वैज्ञानिकों के द्वारा हुए। यह सहज संभव है कि इस प्रकार के प्रयत्नों में विज्ञान की तर्क-संगतता और अनुभव-संगतता को गौण कर दिया गया हो। इन दोनों विचारधाराओं की समीक्षा के आधार पर यह कहा जा सकता है कि ये दोनों विचारधाराएं पूर्ण रूप से विज्ञान-सम्मत और तर्क-सम्मत नहीं है। प्रो. श्रीमती स्टेबिंग, जिन्होंने एडिंग्टन और जीन्स के आदर्शवादी विचारों की कट आलोचना की है और उनके विचारों में रही हई असंगतता को प्रकट किया है, 'भौतिकवाद' को भी विज्ञान-सम्मत दर्शन नहीं मानतीं। उन्होंने इस बात को स्पष्ट रूप से लिखा है कि "भौतिकवादी येन-केन प्रकारेण किसी प्रकार के तत्त्व-मैमासिक भौतिकवाद की स्थापना करना चाहते हैं। (वे चाहते है कि) वैज्ञानिक निष्कर्षों का जिस किसी भी प्रकार से ऐसा प्रतिपादन किया जाए, जिससे वह दार्शनिक विचार पुष्ट हों जिन पर उनका राजनैतिक दर्शन व्यवसायिक रूप से आधारित है। द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद के पोषकों की उतनी ही निकृष्ट तत्त्व-मीमांसा और उतना ही अपूर्ण दर्शन है, जितना कि उन लोगों का है, जो दार्शनिक आदर्शवाद को मान्यता देते हैं । ......... मैं इस सम्भावित भ्रांति को दूर करना चाहती हूं। यदि १. देखें, फिलोसोफी एण्ड फिजिसिस्ट्स, भूमिका, पृ० ११ ।। २. मेटेरियलिज़म एण्ड एम्पिरियो-क्रिटिसिज़म, पृ० ३१० । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003127
Book TitleJain Darshan aur Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni, Jethalal S Zaveri
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2008
Total Pages358
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Science
File Size15 MB
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