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________________ दर्शन और विज्ञान दर्शन जैन दर्शन के बहुत समीप आ जाता। अन्य आदर्शवादी वैज्ञानिक और जैन दर्शन ___आदर्शवादी वैज्ञानिकों में हर्मन वाईल का नाम भी उलेखनीय है। वाईल ने अपनी दार्शनिक विचारधारा का स्पष्ट प्रतिपादन अपनी पुस्तक स्पेस-टाईम-मैटर में किया है। यद्यपि इस कृति में गणित और भौतिक विज्ञान को प्रधानता दी गई है और दर्शन को केवल गौण स्थान ही मिला है, फिर भी स्पष्ट रूप से आदर्शवादी विचारधारा का प्रतिपादन हमें देखने को मिलता है। वाईल ने यह स्वीकार किया है कि दार्शनिक पहलू के विषय में जो कुछ भी कहा गया है, वह अब तक निश्चित और पूर्ण नहीं है। फिर भी आकाश, काल और भौतिक पदार्थ की वास्तविकता के सम्बन्ध में आधुनिक विज्ञान के आधार पर नये दार्शनिक दृष्टिकोणों का विवेचन करने का प्रयत्न उन्होंने किया है। वैज्ञानिक जगत् में वास्तविकता के विषय में जो विचार-विमर्श हुआ है, उसका एक ऐतिहासिक विहंगावलोकन करते हुए उन्होंने लिखा है; “पहले फराड़े और मैक्सवेल नामक भौतिक वैज्ञानिकों ने यह प्रस्ताव रखा था कि विद्युत चुम्बकीय क्षेत्र' भी एक स्वतन्त्र प्रकार की ही वास्तविकता है, जो भौतिक पदार्थ से उल्टे प्रकार की है। बाद में पिछली शताब्दी (१९ वीं) में गणितज्ञों ने बिल्कुल ही भिन्न प्रकार के चिन्तन के आधार पर युक्लिडीय भूमिति की प्रामाणिकता के विषय में संदेह उत्पन्न कर अपने युग में एक ऐस झंझावात आ गया है, जिसने आकाश, काल और भौतिक पदार्थ रूप प्राकृतिक विज्ञान के दृढ़तम स्तम्भों को उखाड़ दिया है, पर केवल इसलिए कि अधिक विस्तृत प्रकार के द्रव्यों के विचार के स्थान मिले तथा दष्टि और अधिक गहन बने ।''३ इस उद्धरण से यह तात्पर्य निकलता है कि वैज्ञानिक तत्त्वमीमांसा जो पहले भौतिकवाद को प्रतिपादित करती थीं, धीरे-धीरे आदर्शवाद की ओर आ रही है और किसी अभौतिक तत्त्व को ही एक मात्र वास्तविकता मानने के प्रति झुक रही है। वाईल की विचारधारा में स्पष्ट रूप से चैतन्य को वास्तविकता के रूप में स्वीकार किया गया है। कार्यों को करने वाली और भोगने वाली एक आध्यात्मिक वास्तविकता (साइकिकल रियलिटी) है, जो कि शरीर के साथ जुड़ी हुई है और ये दोनों मिल कर एक व्यक्ति 'मैं' बनता है।..........चैतन्य अपनी आन्तरिकता को १. वाईल स्वयं अपनी पुस्तक की आदि में लिखते हैं, 'हम यहां पर इन प्रश्नों के गाणितिक और वैज्ञानिक पहलुओं से अधिक सम्बन्धित रहेंगे। दार्शनिक पहलू की चर्चा तो मैं केवल कहीं-कहीं पर करूंगा।' देखें, स्पेस-टाईम-मैटर, पृ० २। २. वही, पृ० २। ३. वही, पृ० २। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003127
Book TitleJain Darshan aur Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni, Jethalal S Zaveri
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2008
Total Pages358
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Science
File Size15 MB
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