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दर्शन और विज्ञान
२३ जीन्स के दर्शन का स्पष्ट मन्तव्य क्या है, यह जानना यद्यपि अत्यन्त कठिन है, फिर भी अनुमान के आधार पर उनकी विचारधारा का प्रतिपादन हम कर सकते है। यहां पर जैन दर्शन के साथ जीन्स के दर्शन की तुलना इसी आधार पर की गई है।
१. जीन्स के दर्शन में एक बात का स्पष्ट रूप से प्रतिपादन हुआ है कि विश्व का कोई स्रष्टा है और यह परम चैतन्यमय सत्ता ही वस्तु-सापेक्ष वास्तविकता है। यद्यपि 'ईश्वर' शब्द का सीधा प्रयोग जीन्स ने नहीं किया है, फिर भी उन्होंने 'ईश्वर-कर्तृत्ववाद' का ही प्रतिपादन किया है, ऐसा प्रतीत होता है। जैन दर्शन 'ईश्वर-कर्तृत्ववाद' को स्वीकार नहीं करता। इस दृष्टि से जीन्स के दर्शन के साथ जैन दर्शन का वैषम्य स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। विश्व का ईश्वर द्वारा निर्मित होना और ईश्वर का एक महागणितज्ञ के रूप में होना, जीन्स के दर्शन का मुख्य सिद्धान्त है। किन्तु इसको सिद्ध करने के लिए जो तर्क जीन्स ने दिया है, वह सदोष
२. जीन्स के दर्शन में मन को वास्तविकता के रूप में प्रतिपादित किया गया है। जैन दर्शन में प्रतिपादित 'आत्मा' और जीन्स का 'मन' वास्तविकता की दृष्टि से सदृश ही प्रतीत होते हैं। भौतिक पदार्थ से भिन्न और चैतन्यशील होते के कारण जीन्स द्वारा प्रतिपादित 'मन' जैन दर्शन में प्रतिपादित आत्म-तत्त्व का ही दूसरा नाम है, ऐसा कहा जा सकता है। मन के स्वरूप के विषय में जीन्स के दर्शन में विशेष वर्णन उपलब्ध नहीं होता है, इसलिए इस विषय में अधिक तुलना करना सम्भव नहीं
३. भौतिक पदार्थ के समूह रूप बाह्य विश्व को वस्तु-सापेक्ष' वास्तविकता के रूप में तो तीन जीन्स ने माना है और वह इसलिए कि वह भिन्न-भिन्न ज्ञाता (चेतना) को समान रूप से अनुभूत होता है, किन्तु जीन्स उसे वास्तविक मानने के लिए तैयार नहीं है। विश्व को विचार से बना हुआ अथवा गणितिक' कहने का कारण यही लगता है कि विज्ञान में पदार्थ के स्वरूप को गाणितिक संज्ञाओं के द्वारा समझाया जाता है। गणित की संज्ञाएं 'विचार' रूप होने से विश्व को भी जीन्स 'विचार' रूप ही बताते हैं। "विश्व जिन ईथरों से और उनकी उर्मि-मालाओं से बना है, वे सब काल्पनिक हैं'' जीन्स का यह अभिप्राय भी इसी तथ्य को सूचित करता है। यदि जीन्स गणितिक शब्द का प्रयोग केवल इसी अर्थ में करते हों, तब तो विश्व के वस्तु-सापेक्ष १. इन सिद्धांतों का खंडन प्रो० स्टेबिंग ने बहुत ही तार्किक ढंग से किया है। यह चर्चा अति विस्तृत होने से यहां नहीं दी गई है। इसके लिए देखें, फिलोसोफी एण्ड दी फिजिसिष्ट्स, पृष्ठ १९-४२।
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