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________________ जैन दर्शन और विज्ञान में परमाणु ३२९ अधिक वेग किसी भी पदार्थ का होना संभव नहीं है । पर यदि संहति (Mass) को शून्य माना जाय तो प्रकाश से अधिक वेग की संभावना की जाती है । आइन्सटीन के पश्चात् आधुनिक विज्ञान में ऐसे सूक्ष्म कणों की संभावना की गई है जिनका वेग प्रकाश से अधिक हो । ' ' संहति - शून्य' (Massless) कणों की अवधारणा विशुद्ध गणितीय क्षेत्र से सम्बद्ध है। जैन दर्शन के परमाणु को भी संहति - शून्य मानना होगा तथा इस आधार पर उसके उपर्युक्त उत्कृष्टतम वेग की संभावना की जा सकती है। (२) आधुनिक विज्ञान में परमाणु- सिद्धांत विकास स- वृत्त पदार्थ का मूलभूत कण क्या है? सन् १८०३ में डाल्टन ने घोषणा की कि यह मूलभूत कण एटम (परमाणु) है; क्योंकि इसका रासायनिक क्रियाओं द्वारा और अधिक विभाजन नहीं किया जा सकता तथा यह रासायनिक तत्त्वों का सूक्ष्मतम भाग है । इलेक्ट्रॉन की खोज से पहले तक परमाणु (एटम) को ही पदार्थ का मूलभूत कण माना जाता था । सन् १८९७ में जे. जे. थॉमसन ने प्रयोगों द्वारा सिद्ध कर दिखाया कि एटम ही पदार्थ का मूलभूत कण नहीं है अपितु वह दो प्रकार के कणों द्वारा बना हुआ है, जिन पर विपरित लेकिन समान मात्रा में आवेश होते हैं। जिन कणों पर ऋणात्मक आवेश होता है, वे 'इलेक्ट्रॉन' कहलाते हैं तथा जिन पर धनात्मक आवेश होता है वे 'प्रोटॉन' कहलाते हैं। इलेक्ट्रॉन पर न्यूनतम संभव ऋणात्मक आवेश होता है जो कि ( - ४.८ x १० -१० ) ई० एस. यू. (इलेक्ट्रो- स्टेटिक यूनिट) के बराबर है । इलेक्ट्रॉन का द्रव्यमान ९.१ x १०.२८ - १० ग्राम होता है । इसी प्रकार प्रोटॉन पर न्यूनतम संभव धनात्मक आवेश होता है तथा वह (+४.८ x १० - १० ) ई० एस०यू० के बराबर है । प्रोटॉन का द्रव्यमान इलेक्ट्रॉन के द्रव्यमान से लगभग १८३७ गुना होता है । फिर यह खोज हुई कि एटम में न केवल आवेशित कण (इलेक्ट्रॉन तथा प्रोटॉन) ही होते हैं, बल्कि आवेश-रहित कण भी होते हैं। इन कणों का नाम 'न्यूटॉन रखा गया। न्यूट्रॉन का द्रव्यमान प्रोटॉन के द्रव्यमान के बराबर होता है । एटम की आकृति को प्रस्तुत करने के लिए समय-समय पर विभिन्न वैज्ञानिकों ने अलग-अलग मॉडल तैयार किए । सन् १९०४ में जे. जे. थॉमसन ने एटम की आकृति तरबू के अनुरूप बतलायी । उसके अनुसार जिस तरह तरबूज में बीज १. 'टेक्योन' (Tachyon) नामक कणों का अस्तित्व आधुनिक विज्ञान में चर्चा का विषय बना है, जिनकी गति प्रकाश से भी अधिक है। 1 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003127
Book TitleJain Darshan aur Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni, Jethalal S Zaveri
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2008
Total Pages358
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Science
File Size15 MB
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