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जैन दर्शन और विज्ञान में पुद्गल २. बन्ध (fusion)
'बन्ध' शब्द का अर्थ है बंधना, जुड़ना, मिलना, संयुक्त होना। दो या दो से अधिक परमाणुओं का भी बन्ध हो सकता है और दो या दो से अधिक स्कंधों का भी। इसी तरह एक या एक से अधिक परमाणुओं का एक या एक से अधिक स्कंधों के साथ भी बन्ध होता है। पुद्गल-परमाणुओं (कार्मण वर्गणाओं) का जीव द्रव्य के साथ भी बंध होता है।
बंध की एक विशेषता यह है कि उसका विघटन या विखण्डन या अंत अवश्यम्भावी है; क्योंकि जिसका प्रारम्भ होता है, उसका अंत भी अवश्यमेव होता है। एक नियम यह भी है कि जिन परमाणुओं या स्कंधों का परस्पर बंध होता है, वे परस्पर सम्बद्ध रह कर भी अपना-अपना स्वतंत्र अस्तित्व कायम रखते हैं। एक द्रव्य दूसरे द्रव्य के साथ दूध और पानी की भांति अथवा रासायनिक प्रतिक्रिया से सम्बद्ध होकर भी अपनी पृथक् सत्ता नहीं खोता। उसके परमाणु कितने ही रूपान्तरित हो जाएं फिर भी उनका अपना स्वतंत्र अस्तित्व कायम रहता है।
यह तो स्वष्ट है कि पुद्गल द्रव्य सकिय है और जो सक्रिय होता है उसका टूटते-फूटते रहना, जुड़ते-मिलते रहना स्वाभाविक ही है। हां, उसमें कोई-न-कोई कारण निमित्त के रूप में अवश्य होता है; उदाहरणार्थ मिट्टी के अनेक कणों का बन्ध होने पर घड़ा बनता है। इसमें कुम्हार निमित्त है। द्रव्य की अपनी रासायनिक प्रक्रिया भी बंध का कारण बन जाती है। कपूर आदि के सम्मिलन से बनी हुई अमृतधारा और उद्जन (हाइड्रोजन) आदि वातियों (गैसों) के मिलने से बना हुआ जल ऐसी ही प्रक्रियाओं के प्रतिफल हैं।
जैनाचार्यों ने बन्ध की प्रक्रिया का अत्यन्त सूक्ष्म विश्लेषण किया है। यद्यपि विज्ञान इस विश्लेषण को अपने प्रयोगों द्वारा पूर्णत: सिद्ध नहीं कर सका है तथापि इसकी वैज्ञानिकता में कोई संदेह नहीं है। परमाणु से स्कंध, स्कंध से परमाणु और स्कंध से स्कंध किस प्रकार बनते हैं इस विषय में हम मुख्यत: चार तथ्य पाते हैं
१. स्कंधों की उत्पत्ति कभी भेद से, कभी संघात से और कभी भेदसंघात से होती है। स्कंधों का विघटन अर्थात् कुछ परमाणुओं का एक स्कंध से विच्छिन्न होकर दूसरे स्कंध से मिल जाना भेद कहलाता है। दो स्कंधों का संघटन या संयोग हो जाना संघात है और इन दोनों प्रक्रियाओं का एक साथ हो जाना भेद-संघात है।
२. परमाणु की उत्पत्ति केवल भेद-प्रक्रिया से ही संभव है। . ३. पुद्गल में पाये जाने वाले स्निग्ध और रूक्ष नामक दो गुणों के कारण
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