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________________ ३०२ जैन दर्शन और विज्ञान उत्पत्ति की दृष्टि से शब्द के मुख्य दो प्रकार हैं-१. वैनसिक-स्वाभाविक या प्राकृतिक-जैसे बादलों का गर्जना। २. प्रायोगिक-प्रयत्नजन्य । प्रायोगिक के दो प्रकार हैं-१. भाषात्मक २. अभाषात्मक। पहले प्रकार में मनुष्य, पशु-पक्षियों आदि की ध्वनियां आती हैं। दूसरे प्रकार में प्रकृति-जन्य और वाद्य-यंत्रों से उत्पन्न होने वाली ध्वनियों का समावेश होता है। भाषात्मक शब्द के दो भेद हैं-१. अक्षरात्मक २. अनक्षरात्मक । पहले वर्ग में ऐसी ध्वनियां आती हैं जो अक्षरबद्ध की जा सके और लिखी जा सके। दूसरे वर्ग में रोने-चिल्लाने, खांसने-फुसफुसाने आदि की तथा पशु-पक्षियों आदि की ध्वनियां आती हैं, जिन्हें अक्षरबद्ध नहीं किया जा सकता । ___अभाषात्मक के दो भेद हैं-१. वैस्रसिक, २. प्रायोगिक । वाद्य-यंत्रों से उत्पन्न होने वाली ध्वनियां दूसरे वर्ग में हैं। इनके चार प्रकार हैं-तत, वितत, घन, सुषिर। १. तत-जो ध्वनि चर्म-तनन आदि झिल्लियों के कम्पन से उत्पन्न होती है। जैसे-भेरी, तबला, ढोलक आदि आघात वाद्य (percussion instruments) २. वितत-वीणा आदि तंत्रि-यंत्रों (string instruments) में तंत्री (तार) के कम्पन से उत्पन्न ध्वनि । जैसे-वीणा, तम्बुरा, सीतार आदि। ३. धन-घण्टा आदि ठोस (घन) द्रव्यों के अभिघात से उत्पन्न ध्वनि । जैसे घण्टा, ताल आदि। ४. सुषिर-बंसी आदि में रहे रिक्तस्थान में रहे वायु-प्रतर के कंपन से उत्पन्न ध्वनि। जैसे-बंशी, शंख आदि। एक अन्य अपेक्षा से शब्द के तीन भेद भी किए जाते हैं-१. जीव शब्द, २. अजीव शब्द, ३. मिश्र शब्द। शब्द वैनसिक प्रायोगिक - भाषात्मक अभाषात्मक अक्षरात्मक अनक्षरात्मक तत वितत घन सुषिर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003127
Book TitleJain Darshan aur Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni, Jethalal S Zaveri
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2008
Total Pages358
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Science
File Size15 MB
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