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जैन दर्शन और विज्ञान
इस प्रकार इस सिद्धांत के अनुसार काल-क्रम के साथ विश्व की स्थूल आकृतियों में परिवर्तन नहीं आता- - अर्थात् स्थिर अवस्था रहती है। केवल आकाशगंगा अथवा आकाशगंगाओं के गुच्छों में परिवर्तन आता है । इस सिद्धांत के परिणामस्वरूप कुछ एक विस्मयोत्पादक तथ्य सामने आए हैं :
१. विश्व अनादि और अनन्त है ( काल की दृष्टि से )
२. आकाश और काल अनन्त हैं ।
३. समस्त आकाश में निरन्तर रूप से नया जड़ उत्पन्न हो रहा है ।
इस प्रकार से वर्तमान में ऐसा एक भी सिद्धांत वैज्ञानिक जगत् में नहीं है, जो कि सर्वमान्य हो ।
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आइन्स्टीन का विश्व-यदि विस्तारमान विश्व के सिद्धांत को स्वीकार न करें, तो भी आइन्स्टीन के द्वारा दिए गए विश्व - सिद्धांत के आधार पर विश्व अनादि और अनन्त सिद्ध होता है । जैसे की रिचार्ड जिस (Richard Hughes) अपने फिजिक्स, एस्ट्रोनोमो एण्ड मेथेमेटिक्स नामक लेख में लिखते हैं: "इस प्रकार - विमिति क्षेत्र - विमिति की तरह पूर्ण वर्तुल (बद्ध परिमिति ) में समाहित नहीं होती है। अर्थात् हम भविष्य काल में चाहे जितने दूर चले जाएं, फिर भी हम भूत काल को प्राप्त नहीं कर सकते । यद्यपि यह कल्पना करने की कोई आवश्यकता नहीं है कि काल की आदि है और अन्त भी । "२
काल
इस समग्र विवेचन के उपसंहार में हम कह सकते हैं कि विश्व - आयु सम्बन्धी वैज्ञानिकों के द्वारा अब तक दिए गए सिद्धांतों में अधिकांश सिद्धांत एक या दूसरे रूप में, 'विश्व का अस्तित्व अनन्त काल से है,' इस तथ्य को स्वीकार करते हैं । दूसरा विचार यह है कि विश्व की आदि किसी निश्चित समय पूर्व हुई और किसी समय इसका अन्त भी हो जाएगा। इस सिद्धांत को स्वीकार करने वाले वैज्ञानिकों ने भी विश्व की आदि का काल भिन्न-भिन्न बताया है ।
'काल और क्षेत्र सांत है या अनन्त ?' इस प्रश्न के सम्बन्ध में वैज्ञानिक जगत् में जो अनिश्चितता है, उसकी स्पष्ट झांकी हमें प्रो. हेन्री मार्गेनौ के आधुनिक विज्ञान के दर्शन' पर लिखी हुई पुस्तक से मिलती है- “क्या काल और आकाश अनन्त है ? आज का विज्ञान, इस अधिकतम रोचक प्रश्न पर दुर्भाग्यवश अनिश्चित रहा है। अब तक किए गए प्रतिपादनों में से सबसे अधिक सफल वह प्रतिपादन है,
१. वही, पृ० ७७ ।
२. कोस्मोलो जीओल्ड एण्ड न्यू, पृ० २२९, में उद्धृत ।
३. दी नेचर ऑफ दी फिजिकल रियलिटी, पृ० १६३ ।
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