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जैन दर्शन और विज्ञान में अमूर्त अचेतन विश्व-मीमांसा
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यह एक सामान्य तथ्य है कि कोई भी पदार्थ जब आकाश में स्थान रखता है, तो आकाश की तीनों ही विमितियों में अपनी लम्बाई, चौड़ाई और ऊंचाई (अथवा गहराई) के कारण फैल जाता है । अब यदि पदार्थ स्थानान्तर करता है (अथवा गति करता है), तो दूसरे स्थान में जाने के लिए उसे कुछ समय लगता है । इस प्रकार पदार्थ की गति के निरूपण में हमें दोनों बातों का ज्ञान आवश्यक होता है-स्थान का और समय का। अत: समय (अथवा काल ) चतुर्थ विमिति के रूप में हो जाता है । अब आपेक्षिकता के सिद्धांत के अनुसार आकाश की तीन विमितियां और काल की एक विमिति मिलकर एक चतुर्वैमितिक अखण्डता का निर्माण करती है और हमारे वास्तविक जगत् में होने वाली सभी घटनाएं इस चतुर्वैमितिक सततता की विविध अवस्थाओं के रूप में सामने आती है ।
आकाश और काल एक दूसरे के साथ किस प्रकार जुड़े हुए हैं, इसको सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक हाइजनबर्ग ने बहुत सरल शब्दों में समझाया है : "जब हम भूत शब्द का प्रयोग करते हैं, तब उसका तात्पर्य यह होता है कि उसमें घटित सभी घटनाओं का ज्ञान करने के लिए हम समर्थ हैं, वे घटनाएं घट चुकी हैं। इसी प्रकार से जब हम 'भविष्य' का प्रयोग करते हैं, तो अर्थ होता है कि वे सभी घटनाएं, जो अब तक घटित नहीं हुई हैं, 'भविष्य' की हैं, जिनको हम प्रभावित करने में समर्थ हैं. इन परिभाषाओं का हमारे दैनन्दिन के शब्द-व्यवहार से सीधा सम्बन्ध है। अत: इस अर्थ में यदि हम इन शब्दों ('भूत' और 'भविष्य' ) का उपयोग करते हैं, तो बहुत सारे प्रयोगों के परिणामस्वरूप यह बताया जा सकता है कि 'भविष्य' और 'भूत' की घटनाएं द्रष्टा की गतिमान् अवस्था अथवा अन्य गुण-धर्मों से बिलकुल ही निरपेक्ष है ।........... . यह बात न्यूटन की यान्त्रिकी (Mechanics) में तथा आइन्स्टीन के 'आपेक्षिकता के सिद्धांत' में सत्य मानी जाती है। किन्तु दोनों में यह फर्क रह जाता है : पुरानी मान्यता में हम यह मान लेते हैं कि 'भविष्य' और 'भूत' के बीच में एक अतिसूक्ष्म (अनन्ततया सूक्ष्म) कालान्तर है, जिसको हम वर्तमान क्षण कहते हैं । परन्तु आपेक्षिकता के सिद्धांत में यह बात नहीं है। यहां पर भविष्य और भूत के बीच जो कालान्तर है, वह परिमित है और उसका दैर्ध्य द्रष्टा के स्थान पर आधार रखता है ।" इस कथन को इस उदाहरण द्वारा और स्पष्ट किया जा सकता है-जैसे अ स्थान पर द्रष्टा है और ब स्थान पर घटना घटती है । द्रष्टा जिस क्षण में घटना को देखता है, वस्तुतः वह घटना उस क्षण में नहीं होती है, क्योंकि ब और अ के बीच जो दूरी है, उस दूरी को पार करने के लिए प्रकाश को परिमित समय लगेगा। इस प्रकार जिसको हम 'वर्तमान ' कहते हैं, वह केवल अतिसूक्ष्म एक क्षण ही नहीं है, किन्तु वह सारा काल वर्तमान में गिना
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