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जैन दर्शन और विज्ञान : सत्य की मीमांसा
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उसने कर लिया तो अच्छे और बुरे का उत्तरदायी क्यों बनेगा ? ईश्वर ने अच्छा कराया तो अच्छा कर लिया और बुरा कराया तो बुरा कर लिया । उत्तरदायी कराने वाला है या करने वाला है?
एक यंत्र उत्तरदायी नहीं हो सकता। एक लौह-मानव ( Robot ) थोड़ी दूर चलता है और फिर गोली दागता है। प्रश्न प्रस्तुत होता है-उसका उत्तरदायी कौन है ? क्या वह लौहमानव है, यन्त्र - मानव है, रोबोट है? बिल्कुल नहीं। उत्तरदायी है चलाने वाला । मनुष्य जिस प्रकार चलाता है, यंत्र- मानव उसी प्रकार चलता है। यदि मनुष्य वैसा ही यंत्र-मानव या लौह - मानव है तो वह अपने कृत का उत्तरदायी नहीं हो सकता। नैतिक दृष्टि से यह एक बड़ी समस्या पैदा हो जाती है नैतिकता की बात एक प्रकार से समाप्त हो जाती है।
कर्मवाद के तीन सिद्धांत
जैन दर्शन ने इस पर समग्रता से विचार किया । उसने पहला सूत्र दिया कर्मवाद का । हर आत्मा की स्वतंत्रता कर्मवाद का पहला आधार है । यदि व्यक्ति 1 का संकल्प स्वतंत्र नहीं है तो वह अपने कृत के प्रति उत्तरदायी नहीं हो सकता । संकल्प करने में वह स्वतंत्र है इसलिए कृत के प्रति उत्तरदायी है । वह अच्छा करता है तो उसका फल अच्छा होता है और बुरा करता है तो बुरा होता है। अच्छे और बुरे का जिम्मेवार वह स्वयं है । यह संकल्प की स्वतंत्रता कर्मवाद का पहला सिद्धांत
है ।
कर्मवाद का दूसरा सिद्धांत है - कृत का नैतिक जिम्मेवार व्यक्ति स्वयं है। वह अपने कृत के प्रति नैतिक दायित्व से अलग नहीं हो सकता। कोई भी काम करता है तो उसे यह उत्तरदायित्व लेना होगा कि इसके लिए मैं स्वयं जिम्मेवार हूं ।
कर्मवाद का तीसरा सिद्धांत है - व्यक्ति को प्रगति और परिवर्तन का अधिकार है। छोटे-से छोटे प्राणी को भी ये दोनों अधिकार उपलब्ध हैं । एक एकेन्द्रिय प्राणी अपना विकास करते-करते पंचेन्द्रिय तक पहुंच जाता है, मनुष्य तक पहुंच जाता है, मुनि बन जाता है। आध्यात्मिक उत्क्रांति के पथ पर चलते-चलते वह वीतराग बन जाता है, केवली बन जाता है, मुक्त आत्मा भी बन जाता है। यह आध्यात्मिक उत्क्रांति का अधिकार प्रत्येक आत्मा को उपलब्ध है। प्रत्येक आत्मा इस उत्क्रांति के आधार पर आत्मा से परमात्मा बन सकती है ।
अधिकार है परिवर्तन एवं प्रगति का
प्रश्न होता है-- आज मनुष्य जैसा है, क्या वह वैसा ही रहे? या अपने आपको
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