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________________ १७६ जैन दर्शन और विज्ञान ३. जर्दा-धूम्रपान से भारत में रोजाना ३,००० लोग मरते हैं अर्थात् सड़क दुर्घटनाओं से २० गुना व हत्याओं से २१ गुना अधिक लोग रोजाना जर्दा-धूम्रपान से जनित हुई बीमारियों से मरते हैं। देश के समाचार-पत्रों में हत्याओं व दुर्घटनाओं से हुई मृत्यु के त्रासद समाचार मुखपृष्ठ पर छपते हैं, किन्तु मानव-मृत्यु के इनसे कहीं बड़े कारण सिगरेट या बीड़ी से हुई मृत्यु का उल्लेख भी नहीं होता। आलोचना तो दूर समाचार-पत्रों में तो जर्दा बीड़ी और सिगरेट के प्रचार-प्रसार के लिए लुभावने विज्ञापन छपते हैं। ४. कई प्रकार के कैंसर पैदा करने वाले तत्त्व जो कारसीनोजन कहलाते हैं, सिगरेट या बीड़ी के धुएं में होते हैं। मुंह, गले व फेफड़े के कैंसर के हर दस रोगियों में से ९ व्यक्ति वे होते हैं जो जर्दा-धूम्रपान के आदी होते हैं। मूत्राशय, गुर्दे पेन्क्रीयाज, पेट व गर्भाशय कैंसर भी धूम्रपान करने वालों के अधिक होते हैं। मुंह, गले व भोजन नली का कैंसर आमंत्रित करने में शराब धूम्रपान का सहयोग करती है। ५. जर्दा-धूम्रपान लेने वालों में हृदय-रोग की संभावना १५ गुना अधिक होती ६. क्रॉनिक ब्रांकाइटिस व एम्फाइजीमा जैसे खतरनाक रोगों के भी दस में से नौ रोगी धूम्रपान करने वाले व्यक्ति होते हैं। ७. भारत में धूम्रपान करने वाले व्यक्तियों में से ३० प्रतिशत लोग क्रॉनिक ब्रांकाइटिस नामक श्वास रोग से पीड़ित होते हैं। ८. जर्दा-धूम्रपान लेने वालों में ब्रेन हेमरेज और लकवे की बीमारी जर्दा धूम्रपान न लेने वालों से कहीं अधिक होती है। ९. जर्दा-धूम्रपान के साथ डायबिटीज की सम्भावना बढ़ जाती है। १०. धूम्रपान से रीढ़ की हड्डी के विकार पैदा हो जाते है। ११. जर्दा-धूम्रपान करने वाले के चेहरे पर झुर्रियां, उसके द्वारा किये जाने वाले जर्दा-धूम्रपान की मात्रा के अनुपात में बढ़ती है। १२. यदि कोई व्यक्ति ४० सिगरेट पीता है, तब उसके बगल में बैठा ऐसा व्यक्ति सिगरेट नहीं पीता, ३ सिगरेट के बराबर धुआं शरीर में ग्रहण करता है। १३. चिन्ताओं से घिरे लोगों के लिए जर्दा-धूम्रपान अधिक खतरनाक हृदयाघात (हार्ट अटैक) की संभावना बहुत ज्यादा होती है। १४. जर्दा-धूम्रपान से उच्च रक्तचाप जैसी घातक बीमारी हो जाती है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003127
Book TitleJain Darshan aur Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni, Jethalal S Zaveri
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2008
Total Pages358
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Science
File Size15 MB
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