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________________ विज्ञान के संदर्भ में जैन जीवन-शैली १६३ उपरोक्त तथ्यों से यह पता लगता है कि प्रकृति ने मनुष्यों की बनावट गाय, घोड़ा, ऊंट, जिराफ, सांड आदि शाकाहारी पशुओं के समान ही की है, उसे शाकाहारी पदार्थों को ही सुगमता व सरलता से प्राप्त कर सकने व पचाने की क्षमता दी है । मनुष्य 'के अलावा संसार का कोई भी जीव प्रकृति द्वारा प्रदान की हुई शरीर रचना के विपरीत आचरण करना नहीं चाहता। शेर भूखा होने पर भी शाकाहारी पदार्थ नहीं खाता और गाय भूखी होने पर भी मांसाहार नहीं करती क्योंकि वह उनका स्वाभाविक प्रकृति अनुकूल आहार नहीं है। मांसाहरी पशु अपनी पूरी उम्र मांसाहार कर व्यतीत करते हैं; उनके लिए यही पूर्ण आहार है किन्तु कोई भी मनुष्य केवल मांसाहर पर दो तीन सप्ताह से अधिक जीवित नहीं रह सकता क्योंकि केवल मांस का आहार इतने अधिक तेजाब व विष (Acid and Toxins ) उत्पन्न कर देगा कि उसके शरीर की संचालन क्रिया ही बिगड़ जाएगी। जो मनुष्य प्रकृति के विपरीत मांसाहार करते हैं उन्हें भी कुछ-न-कुछ शाकाहरी पदार्थ लेने ही पड़ते हैं क्योंकि मनुष्य के लिए मांसाहार अपूर्ण व आयु क्षीण करने वाला आहार है। ऐसकीमों जो परिस्थितिवश प्राय: मांसाहार पर ही रहते हैं, की औसत आयु सिर्फ ३० वर्ष ही है। जबकि केवल शाकाहार पर मनुष्य पूरी व लम्बी उम्र सरलता से जी सकता है। उपरोक्त सभी तथ्य यह प्रमाणित करते हैं कि प्रकृति ने मनुष्य की रचना शाकाहारी और केवल शाकाहार भोजन के अनुकूल ही की है। मांसाहारः रोगों का जन्मदाता मांसाहार पर भगवान महावीर ने बहुत तीव्रता से प्रहार किया है। जैन धर्म ने तो मांसाहार को हिंसा की दृष्टि से तथा भाव एवं लेश्या की मलिनता की दृष्टि से हेय माना ही है, पर विश्व के अन्य धर्म - शास्त्रों व महापुरुषों ने हर प्राणी मात्र में उस परम पिता परमात्मा की झलक देखने को कहा है व अहिंसा को परम धर्म माना है। अधिकांश धर्मों ने तो विस्तार पूर्वक मांसाहार के दोष बताए हैं और उसे आयुक्षीण करने वाला व पतन की ओर ले जाने वाला कहा है किन्तु किसी भी निरीह प्राणी की हत्या का निषेध तो सभी धर्मो ने किया है । अपने स्वाद व इन्द्रिय-सुख को ही जीवन का परम ध्येय समझने वाले कुछ लोग अपने स्वार्थवश यह प्रकट करते हैं कि उनके धर्म में मांसाहार निषेध नहीं है, किन्तु यह असत्य है । ' शरीर और मन की दृष्टि से भी मांसाहार पर आज बहुत विचार हो चुका है। वैज्ञानिक खोजों से यह प्रमाणित हो चुका है कि मांसाहार शरीर की दृष्टि से १. विस्तार के लिए देखें गोपीनाथ अग्रवाल, शाकाहार या मांसाहार पृष्ठ २५-२८ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003127
Book TitleJain Darshan aur Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni, Jethalal S Zaveri
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2008
Total Pages358
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Science
File Size15 MB
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