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________________ १४० जैन दर्शन और विज्ञान ४. शिकार नहीं करना ५. चोरी नहीं करना ६. वेश्यागमन नहीं करना ७. परस्त्रीगमन नहीं करना एक जीवन की शैली बन गई; जीवन का स्वभाव और व्यवहार बन गया; एक संस्कार बन गया; जो जैन श्रावक है, वह इस आधार पर चलेगा। वही शैली आज तक चली आ रही है। आहार-शुद्धि और व्यसन-मुक्त जीवन __जैन जीवन शैली का एक प्रमुख घटक है-आहार-शुद्धि और व्यसन-मुक्ति। उपवास आदि तप, मांसाहार-वर्जन, तम्बाकू-वर्जन, मद्यपान-वर्जन आदि विषयों का सम्बन्ध जीवन-शैली के इस घटक से है। इन विषयों का वैज्ञानिक सिद्धान्तों और प्रयोगों के सन्दर्भ में चिन्तन व्यक्ति को नई दृष्टि देता है। आहार-विवेक और आहार-विज्ञान के आधार पर इसे चरितार्थ किया जा सकता है। आहार-विवेक और आध्यात्मिक साधना में समानताएं हैं। ये दोनों हमें स्वसंयम, स्वज्ञान और स्वावलम्बन सिखाते हैं। साधना-मार्ग में भी गुरु केवल मार्गदर्शक होता है, पर साधक का अपना पुरुषार्थ या विवेक ही मुख्यत: उसे आगे बढ़ाते हैं। उसी तरह स्वयं का आहार-विवेक ही व्यक्ति को स्वस्थ रख सकता है, डाक्टर या वैद्य केवल मार्गदर्शक बन सकते हैं। दूषित आहार का परिणाम-रोग रोग क्या है? हमारे शरीर में जमा होने वाले विषद्रव्यों का परिणाम रोग है। इन विषद्रव्यों के शरीर में जमा होने के कई कारण हैं। जैसे-अयोग्य भोजन, विषैली दवाइयां, अतिशय श्रम, अति कामसेवन, अति भय, अति चिंता, मानसिक तनाव, अनिद्रा आदि। इन सबका परिणाम यह होता है कि शरीर से विष-द्रव्यों का बाहर होने वाला निष्कासन श्लथ हो जाता है और यह विष-द्रव्य रक्त में और शरीर के ऊतकों में जमा हो जाता है जिससे बीमारी पैदा होती है। उपरोक्त कारणों में से अयोग्य भोजन एक मुख्य कारण है। ___ यदि हमारा आहार, नीहार आदि रहन-सहन सम्यक् होगा और साथ ही आसन, प्राणायाम, प्रेक्षाध्यान आदि चलते रहेंगे, तो शरीर में विष-द्रव्यों का जमाव अतिमात्रा में नहीं होगा और जो जमा हो गए हैं, उन्हें बाहर निकाल देने से शरीर में किसी घातक या तीव्र बीमारी होने की संभावना नहीं रहेगी। हमारा शरीर भिन्न-भिन्न अवयवों से एवं प्रत्येक अवयव ऊतकों से Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003127
Book TitleJain Darshan aur Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni, Jethalal S Zaveri
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2008
Total Pages358
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Science
File Size15 MB
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