SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 89
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ७८ अप्पाणं सरणं गच्छामि देंगे। केवल रोग की चिकित्सा चलेगी तो बीमारियों की श्रृंखला भी चलती चली जाएगी। इसलिए जरूरत है कि रोगी की चिकित्सा की जाए। प्राकृतिक चिकित्सक यही करता है। आज चिकित्सा की एक नयी पद्धति प्रचलित हुई है। वह है भोजन के द्वारा चिकित्सा। कुछ अमरीकी वैज्ञानिकों ने इस पद्धति का प्रयोग किया है। इसमें किसी भी प्रकार की ओषधि का सहारा नहीं लिया जाता। वे मानते हैं कि बीमारी पैदा होती है विष के संचय से। विष का अर्थ है शरीर में अम्लता का जमाव । अम्लता शरीर में जितनी बढ़ती है, उतनी ही बीमारियां पैदा होती हैं। औषधि के द्वारा अम्लता को मिटाना पर्याप्त नहीं है। वे ऐसे भोजन का चुनाव करते हैं जिसमें क्षारधर्मिता ज्यादा हो और अम्लता कम हो। चीनी मीठी होती है, पर अम्लता बहुत पैदा करती है। वे इसका वर्जन करते हैं। उपयुक्त भोज्य पदार्थों का चुनाव कर वे रोग की नहीं, रोगी की चिकित्सा करते हैं। हमारा भी यही प्रयत्न है। मानसिक तनाव से मुक्त करने के लिए हम मनोरोग की नहीं, मनोरोगी की चिकित्सा करें। किसी के डिप्रेशन हो गया, अवसाद या विषण्णता हो गई, हम इन मनोरोगों की चिकित्सा न करें, किन्तु जो व्यक्ति इनसे ग्रस्त है उसकी चिकित्सा करें। चिकित्सा है क्षारधार्मिता, चिकित्सा है अनुप्रेक्षा। जो मनोरोग से ग्रस्त है, हम उस रोगी को कहें तुम एकत्व की अनुप्रेक्षा करो, मैत्री की अनुप्रेक्षा करो, करुणा और माध्यस्थ्य भाव की अनुप्रेक्षा करो। यह अनुप्रेक्षा उसको रोग से मुक्त कर देगी। जब ये सचाइयां मस्तिष्क में जागेंगी तब उलझनें अपने आप समाप्त होती जाएंगी। जब सचाइयां प्रकट होंगी तब मानसिक तनाव स्वतः मिटने लगेगा। व्यक्ति अपने पुरुषार्थ की सीमा को भी समझे और नियति की सीमा को भी समझे। नियति या कर्म की भी एक सीमा है और पुरुषार्थ की भी एक सीमा है। कर्म से जो अनुदान प्राप्त होता है उसे भी सचाई मानकर स्वीकार करे और जो पुरुषार्थ से अनुदान प्राप्त होता है उसे भी सचाई मानकर स्वीकार करे। कर्म से मिलने वाले फल को पुरुषार्थ के द्वारा न झुठलाए और पुरुषार्थ के द्वारा मिलने वाले परिणाम को कर्म के द्वारा न झुठलाए। एक-दूसरे की सीमा का अतिक्रमण न करे। किसी भी सचाई को अस्वीकार न करे। दोनों सचाइयों को साथ में लेकर चलें। जब इन सचाइयों का उद्बोध होगा, जागरण होगा, तब मानसिक तनाव स्वतः समाप्त हो जाएंगे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003126
Book TitleAppanam Saranam Gacchhami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy