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________________ प्रेक्षा एक चिकित्सा है मनोरोग की ७७ दूसरा कोई उसमें आ न जाए। मेरे लाभ में वह सहभागी न बन जाए। उसे मधुमक्खियां पालनी आवश्यक होती है । जो मधुमक्खियां पालता है क्या वह उनके काटने से स्वयं बच सकता है? यह कभी नहीं होगा । जो दूसरों को मधुमक्खियों का शिकार बनाना चाहता है, क्या वह स्वयं उनका शिकार नहीं बनेगा ? सामाजिक दुर्व्यवस्था और मान्यताएं आज आदमी ने पदार्थों की अनेक मधुमक्खियां पाल रखी हैं। पहली जरूरत है कि उनसे बचने का उपाय खोजा जाए। आदमी की एकांगिता के कारण उसने पदार्थ को इतना स्थान दे दिया कि वह पदार्थों में दूसरों को संभागी बनाना नहीं चाहता । आज जो सामाजिक कठिनाइयां या समस्याएं बढ़ी हैं, वे सामाजिक व्यवस्थाओं के कारण बढ़ी हैं। यह सच है । किन्तु व्यस्वस्थाएं आयीं कहां से? अनेक प्रकार की व्यवस्थाएं हैं- राजतंत्र की व्यवस्था, सामंतशाही की व्यवस्था, संपत्ति के एकाधिकार या स्वामित्व की व्यवस्था । इन व्यवस्थाओं का स्रष्टा कौन है ? व्यवस्था व्यवस्था से नहीं आयी । इनका स्रष्टा है-मनुष्य का मस्तिष्क । ये व्यवस्थाएं आयी हैं मनुष्य की गलत मान्यताओं के कारण । यदि ये मान्यताएं नहीं होतीं तो वे व्यवस्थाएं नहीं जन्मतीं। जितनी सामाजिक दुर्व्यवस्थाएं आय हैं, वे सत्य को झुठलाने के कारण आयी हैं । आदमी आदमी का स्पर्श नहीं करता, उसे अछूत मानता है । हमने देखा है - कुत्ता थालियों को चाटता है। आदमी उसे देखते हुए भी नहीं हटाता । यदि एक आदमी उसे छू लेता है तो वह आगबबूला हो जाता है। क्या कुत्ते से आदमी निकृष्ट है? कुत्ता कितना घृणित है? वह क्या नहीं खाता ? आज स्वास्थ्य की दृष्टि से देखा जाए तो पता चलेगा कि बीमारी के कितने परमाणु कुत्ते के मुंह पर लगे रहते हैं । वह कभी मांस पर मुंह देता है, कभी सड़े-गले कलेवर पर और कभी मल पर। वह थाली को चाटता है। कोई आपत्ति नहीं होती। आदमी यदि उन बर्तनों से छू भी जाए तो आपत्ति के पहाड़ टूट पड़ते हैं। यह क्या है ? आदमी ने एक भयंकर भ्रान्ति पाल रखी है। यह मानसिक बीमारी है। इससे अनेक छोटी-मोटी बीमारियां पैदा होती हैं । ये मनोविकृतियां जब तक रहेंगी, तब तक मानसिक तनाव कभी नहीं मिट सकेगा । इसलिए प्रथम आवश्यकता यह है कि इन विकृतियों को मिटाया जाए । चिकित्सा रोग की नहीं, रोगी की रोग की चिकित्सा में अध्यात्म का विश्वास नहीं है । उसका विश्वास है रोगी की चिकित्सा में । रोग की चिकित्सा से बहुत लाभ नहीं हो सकता । रोग की चिकित्सा करते हैं और यदि रोगी कमजोर है या उसमें प्रतिरोधात्मक शक्ति कम है तो एक रोग के उपशमन के साथ दूसरे रोग के कीटाणु आक्रमण कर For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.003126
Book TitleAppanam Saranam Gacchhami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size15 MB
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