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________________ ६२ अप्पाणं सरणं गच्छामि अस्तित्व ज्ञान पर आधृत नहीं सामने यह आकाश है। इसमें अनन्त-अनन्त परमाणु भरे पड़े हैं। सभी प्रकार के परमाणु हैं। विश्व में जितने तत्त्व हैं, उन सबके परमाणु आकाश में विद्यमान हैं। अंगुली हिल रही है, उसके चारों ओर अनन्त परमाणु हैं। क्या हम उन्हें जानते हैं? देखते हैं? नहीं देख पाते। क्या इसके आधार पर उनके अस्तित्व को ही नकार दें? ऐसा हो तो फिर दुनिया में कोई तत्त्व रह नहीं पाएगा। आज का विज्ञान इस दिशा में प्रयत्नशील है कि हजारों वर्ष पहले जो लोग बोले थे, उनके परमाणु जो आकाश-मंडप में आज भी विद्यमान हैं, उनको खोजना, उनके आधार पर उनकी मूल वाणी को खोज निकालना। इस आकाश-मंडप में चिन्तन के, भोजन के, प्राण के परमाणु विद्यमान हैं, और भी अनेक प्रकार के परमाणु हैं, तत्त्व हैं। किन्तु उन सबको हम नहीं जानते। पर हम यह नहीं कह सकते कि वे नहीं हैं, उनक अस्तित्व नहीं है। यदि हम ऐसा मान बैठे तो हमारी दुनिया बहुत छोटी हो जाएगी और दुनिया उस व्यक्ति की ही होगी, उतनी ही होगी जितना वह व्यक्ति जानता है। दुनिया अनेक भागों में बंट जाएगी। एक बच्चा कम जानता है तो उसकी दुनिया छोटी होगी। एक वयस्क आदमी अधिक जानता है तो उसकी दुनिया बड़ी होगी। दुनिया का अपना कोई अस्तित्व नहीं होगा। उसका सारा अस्तित्व हमारे ज्ञान पर आधृत हो जाएगा। इन्द्रियों की शक्ति कितनी विकल? आत्मा एक सूक्ष्म सत्ता है। चैतन्य एक सूक्ष्म सत्ता है। हम सूक्ष्म को जानना चाहते हैं। पर हम अपने अज्ञान को देखें। अपने ज्ञान की सीमा को देखें। आंख में देखने की शक्ति है। पर उसके देखने की भी एक सीमा है। वह एक निश्चित आवृत्ति की तरंगों को ही देख पाती है। रूप तो बहुत हैं, पर आंख सबको नहीं देख पाती। अति निकटता या अति दूरी हो तो आंख नहीं देख सकती। आंख सामने बैठे हुए व्यक्ति को देख सकती है। यदि आंख में सुरमा आंजा हुआ हो तो वह नहीं देख पाती। आंख से पन्ना पढ़ा जा सकता है। पर यदि पन्ने को आंख से सटा दें तो वह नहीं पढ़ सकती। अति निकटता में आंख नहीं देख पाती। इसी प्रकार अति दूर में भी आंख नहीं देख पाती। आंख एक निश्चित अवधि में ही देख सकती है, उससे परे नहीं देख सकती। इसी प्रकार आंख सूक्ष्म को नहीं देख सकती। इसीलिए सूक्ष्म-वीक्षण यंत्रों का आविष्कार हुआ। यदि आंख में सूक्ष्म को देखने की क्षमता होती तो वैज्ञानिकों को सूक्ष्म-वीक्षण यंत्रों के निर्माण की जरूरत ही नहीं होती। आंख व्यवहित को नहीं देख सकती। बीच में भींत आ गई, कोई व्यवधान आ गया, तो आंख देख नहीं पाती। मिश्रण कर देने पर आंख उन वस्तुओं का विवेक नहीं कर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003126
Book TitleAppanam Saranam Gacchhami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size15 MB
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