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________________ प्रेक्षा एक प्रयोग है चिर यौवन का ५६ प्रतिस्रोत में चलने की भावना जागे तो वह अनेक अनैतिकताओं से बच सकता है अन्यथा नहीं । प्रेक्षा ध्यान के द्वारा प्रतिस्रोतगामिता का भाव पैदा होता है। आदमी हमेशा आंख खोलकर देखता है। यदि वह आंख मूंदकर देखने का अभ्यास करे तो उसमें प्रतिस्रोत की वृत्ति पैदा होती है । जब आदमी बाहरी संगीत को छोड़कर भीतरी संगीत को, नाद को सुनने का प्रयास करता है तो उसमें प्रतिस्रोत की भावना जागृत होती है। आदमी दूसरों को देखने में रस लेता है। जहां कहीं जायेगा वह दूसरों को ही देखेगा। धर्म-स्थान में आने वाले भी दूसरों को अधिक देखते हैं। वे साधुओं के छिद्र देखने में बड़ा रस लेते हैं । धर्म-स्थान आत्म-निरीक्षण का स्थान होता है। वहां भी आदमी पर निरीक्षण करता है । कैसी विडम्बना ! निरन्तर दूसरों को देखने के कारण आदमी की दृष्टि ऐसी बन गयी कि वह अपने-आपको देखना ही भूल गया। यह है दीये तले अंधेरा । आदमी भूल ही गया कि उसे अपने आपको भी देखना चाहिए। प्रेक्षा ध्यान अपने आपको देखने की प्रक्रिया है । यह प्रक्रिया प्रतिस्रोत की चेतना का निर्माण करती है जिससे यह फलित होता है कि दूसरों को देखना बंद करें और स्वयं को देखें । हम बार-बार यह दोहराते हैं - 'स्वयं स्वयं को देखें। अपने आपको देखने के लिए ही प्रेक्षा-ध्यान का अभ्यास करें ।' ये सूत्र इसलिए बार-बार दोहराए जाते हैं कि हमारे भीतर प्रतिस्रोत चेतना का निर्माण हो। इस चेतना के निर्माण से व्यक्ति युवा रह सकता है । परिस्थितिवाद : एक विपर्यय आज एक नये दर्शन का उदय हुआ है। उसका नाम है- परिस्थितिवाद । इसके आधार पर माना जाता है कि जो कुछ होता है, सारा परिस्थितिजन्य ही होता है । व्यक्ति का उसमें कोई दोष नहीं है। इस प्रकार सारा दोष परिस्थिति पर ही लाद दिया जाता है । व्यक्ति से पूछा - 'तुमने लड़ाई क्यों की? यह अप्रामाणिकता का बर्ताव क्यों किया ? गालियां क्यों दीं?' वह सीधा-सा उत्तर देगा - 'मैं क्या करता ? ऐसी परिस्थिति में इसके सिवाय कोई चारा ही नहीं था । मेरे स्थान पर यदि तुम होते तो तुम भी ऐसा ही बर्ताव करते ।' अपने आपको निर्दोष और पवित्र प्रमाणित करने के लिए आदमी सारा दोष परिस्थिति पर मढ़कर निश्चिन्त हो जाता है। इस प्रकार मनुष्य परिस्थिति को मुख्य और अपने अस्तित्व को गौण मानकर चल रहा है। वह अपने कर्तव्य को गौण और परिस्थिति को मुख्य मानता है । यह एक विपर्यय है। जहां यह विपर्यय काम करता है वहां समस्याओं का कभी अंत नहीं हो सकता। प्रेक्षा-ध्यान के द्वारा एक ऐसी चेतना का निर्माण किया जाता है कि उसमें परिस्थिति द्वयं और व्यक्ति का कर्तव्य प्रथम हो जाता है। उससे गौण को गौण और मुख्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003126
Book TitleAppanam Saranam Gacchhami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size15 MB
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