________________
प्रेक्षा एक प्रयोग है चिर यौवन का ५५
पुरानेपन का इतना मोह और अनुराग हो जाता है, वह चाहे कितनी ही कम उम्र का हो, है बूढ़ा ही। बूढ़े को या युवा को अवस्था के साथ नहीं जोड़ा जा सकता। प्रेक्षा है वर्तमान में जीना
प्रेक्षा-ध्यान का एक महत्त्वपूर्ण सूत्र है-वर्तमान में जीना। वह वर्तमान में देखना सिखाता है। वह कहता है-शरीर-प्रेक्षा करो। वर्तमान में शरीर में क्या-क्या घटित हो रहा है उसे देखो। कौन-सा पर्याय चल रहा है? कौन-सा पर्याय नष्ट हो रहा है? कौन-सा पर्याय उत्पन्न हो रहा है? क्या-क्या जैविक
और रासायनिक परिवर्तन हो रहा है? हृदय का संचालन कैसे हो रहा है? शरीर के रसायन और विद्युत्-प्रवाह किस प्रकार के हो रहे हैं? जो इन सारी घटनाओं को देखता है वह वर्तमान को देखता है और जो वर्तमान को देखता है, जो वर्तमान में जीता है, जिसने वर्तमान को पकड़ रखा है, वह कभी बूढ़ा नहीं होता। सबसे कठिन है वर्तमान को पकड़ पाना। जिसने वर्तमान को पकड़ लिया, उसने सचमुच महान् सत्य को पा लिया।
साइप्रस में काल देवता की एक मूर्ति बनी। वह बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। उस मूर्ति के सिर के अगले भाग में सघन केश दिखाये गए हैं और पीछे के भाग में वह मुंड है, एक भी केश नहीं है। वह मूर्ति काल-समय का वास्तविक ज्ञान कराती है। समय सामने से आता है। वर्तमान आता है। जिसने उसको आगे से पकड़ लिया, वह जीत गया। पीछे से उसे पकड़ा नहीं जा सकता। अतीत व्यर्थ है। उसे नहीं पकड़ा जा सकता।
वर्तमान ही यथार्थ है। अतीत बीत चुका। वह अयथार्थ हो गया। भविष्य प्राप्त नहीं है। वह भी अयथार्थ है। वर्तमान को पकड़ना, समझना ही सत्य को पकड़ना है, समझना है। पटुता का तारतम्य
प्रेक्षा-ध्यान वर्तमान में जीना सिखाता है। वर्तमान में शरीर में जो कुछ घटित होता है, जो चंचलता हो रही है या जिन कारणों से चंचलता हो रही है, उनको देखना ही प्रेक्षा-ध्यान है। शरीर की संरचना बहुत ही जटिल और सूक्ष्म है। एक-एक सेल की संरचना भी बहुत सूक्ष्म है। दस दिन के अभ्यास मात्र से शरीर को पूरा नहीं समझा जा सकता। लम्बे अभ्यास से ही हम उससे कुछ परिचित हो सकते हैं। साधकों में देखने-पकड़ने की तरतमता होती है। एक प्रश्न कई बार सामने आता है कि शिविरों में वे लोग भी आते हैं जो पहली बार प्रेक्षा का अभ्यास करने के इच्छुक हैं और वे लोग भी आते हैं जिन्होंने लम्बे समय तक प्रेक्षा का अभ्यास कर लिया है। दोनों में संगति कैसे हो सकती है? यह कोई जटिल समस्या नहीं है। जो व्यक्ति मतिज्ञान और श्रुतज्ञान की
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org