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________________ ५४ अप्पाणं सरणं गच्छामि रहने का अभ्यासी कहा जा सकता है। यदि हम गहरे में जाएं, दर्शन की बहुत सारी गुत्थियों को सुलझाने बैठें तो यह लगेगा कि भावक्रिया ने मनुष्य के विकास में बहुत बड़ा योग दिया है। भावक्रिया ने ही प्राणी को निगोद (वनस्पति) से मनुष्य की अवस्था तक पहुंचाया है। निगोद विकास का आदि-बिन्दु है और मनुष्य अवस्था विकास का चरम-बिन्दु है। निगोद प्राणियों का अक्षय कोष है। वहीं से सारा विकास प्रारंभ होता है। मनुष्य का जीव जब उस निगोद में था तब एककोशीय प्राणी के रूप में था। कोई संकल्प जागा, भावक्रिया होती रही, अल्प-विकसित चेतना को विकसित होने का योग मिलता रहा। वह चलते-चलते अमनस्क अवस्था से समनस्क अवस्था तक पहुंच गया। उसमें इन्द्रिय चेतना, मनश्चेतना और बौद्धिक चेतना विकसित हुई। विवेक चेतना जागी। यह सब भावक्रिया से ही सम्भव हो सका है। क्रियेटिव इवोल्यूसन यूनान के दार्शनिकों ने 'क्रियेटिव इवोल्यूसन' (Creative evolution) पर बहुत विचार किया है। उनका कहना है कि मनुष्य का जो जैविक विकास-क्रम है वह सारा एक संकल्प के द्वारा हुआ है। यदि हम भावक्रिया को ठीक समझ लें तो उस सृजनात्मक विकास की व्याख्या को समझ सकते हैं। भावक्रिया के बिना, निरंतर संकल्प की प्रेरणा के बिना कोई भी प्राणी अविकास से विकास की दशा तक नहीं पहुंच सकता। यह प्रेक्षा का प्रयोग अप्रमाद या सतत जागरूकता का प्रयोग है। यह चैतन्य की दीपशिखा को निरंतर प्रज्ज्वलित रखने का प्रयोग है। इस प्रयोग के द्वारा मनुष्य सदा युवा रह सकता है। जो अप्रमत्त रहता है वह सदा युवा बना रहता है। युवा झपकियां नहीं लेता। बूढ़ा वह होता है जो अतीत की स्मृतियों में खोया रहता है। युवा वह होता है जो वर्तमान में रहता है। बूढ़ा आदमी निरंतर अतीत की यादों में रस लेता रहता है। उसे वर्तमान अच्छा ही नहीं लगता। वह अतीत के गण गाता है, अपने अतीत को याद कर खिल उठता है। वह स्मृतियों के कगार पर खड़ा होता है और स्मृतियों की बैसाखी के सहारे चलता रहता है। युवा अतीत को समझता है पर जीता है वर्तमान को। वह वर्तमान पर चलता है, खड़ा होता है और उसे जानता-समझता है। वह अतीत की बातों में कभी नहीं उलझता। वह उलझेगा भी क्यों? उसका अतीत है ही क्या? एक बूढ़े व्यक्ति का अतीत ८० वर्ष का है और एक युवा व्यक्ति का अतीत २०-२५ वर्ष का है। वह युवा क्या स्मृति करेगा और कौन से अतीत की प्रशंसा करेगा? उसे रस ही नहीं आएगा। जो केवल अतीत के गीत गाता है वह चालीस वर्ष का युवा भी बूढ़ा है और जो वर्तमान को पकड़कर चलता है वह अस्सी वर्ष का बूढ़ा भी युवा है। जो पुराने के नाम पर जहर पीने को तैयार रहता है और नये के नाम पर अमृत को भी ठुकरा देता है, जिसमें Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003126
Book TitleAppanam Saranam Gacchhami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size15 MB
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