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________________ ४८ अप्पाणं सरणं गच्छामि को बढ़ाने के लिए संकल्प - शक्ति का सहारा लेना होगा। इच्छा, आकांक्षा और संकल्प - शक्ति को बढ़ाना होगा। इसके लिए प्रारंभ में थोड़ा अनुभव करना होगा । अनुभव के बिना आस्था का निर्माण नहीं होता । ये ध्यान शिविर अनुभव कराने के माध्यम बनते हैं । इनसे व्यक्ति में आस्था का निर्माण होता है । इस आस्था के आधार पर व्यक्ति आगे बढ़ता है और एक दिन चरम बिन्दु तक पहुंच जाता है। राजा भोज संस्कृत के विद्वानों, आयुर्वेद के आचार्यों और भारतीय विद्याओं को आश्रय देने वाला एक महान् राजा था। एक बार वह शिरःशूल से पीड़ित हो गया। देश के सारे वैद्य चिकित्सा करने आ पहुंचे। कोई लाभ नहीं हुआ । दर्द बढ़ता ही गया । राजा का स्वभाव चिड़चिड़ा हो गया । उसका क्रोध बढ़ गया। दर्द की भयंकरता से परेशान होकर एक दिन उसने आदेश दिया कि मेरे राज्य से सभी वैद्यों को निकाल दिया जाए और चिकित्सा-ग्रन्थों को नदी में बहा दिया जाए। राजा का आदेश लोह की लकीर होती थी । सारे राज्य में खलबली मच गई। वैद्यों को निकाल दिया गया। पुराने ग्रन्थों को एक-एक कर नदी के प्रवाह में डाल दिया गया। आयुर्वेद के महान् आचार्य जीवक ने यह सुना। उनका मन तिलमिला उठा । आयुर्वेद की इस दुर्दशा को वे सहन नहीं कर सके। वे राजा भोज के पास आए और अनुनय-विनय किया कि चिकित्सा का एक अवसर उन्हें दिया जाए। राजा ने कहा - 'निकाल दो, इसे | नहीं चाहिए मुझे आयुर्वेद की चिकित्सा ।' जीवक ने अधिकारियों को समझाया और कहा - ' मात्र एक अवसर दिया जाए। यदि मैं असफल रहा तो मेरा सिर काट डालें ।' अधिकारियों ने राजा को समझाया। राजा मान गया । महान् वैद्य जीवक ने राजा के सिर की शल्य चिकित्सा की । उसको खोला। उसके आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा जब उसने देखा कि सिर के एक कोने में एक मछली का बच्चा हलचल कर रहा है। उसे बाहर निकाला । सिर को लेप से सांधा । राजा का सिर दर्द समाप्त हो गया । राजा को चमत्कार-सा लगा। पूछने पर जीवक ने कहा- 'आप कभी तालाब पर स्नान - कुल्ला करने गये थे। तब सम्भव है मछली का अण्डा आपके भीतर पानी के साथ चला गया और वह सिर-दर्द का मूल कारण बना।' राजा ने कहा - 'तालाब पर गया था । उसके बाद ही यह दर्द बढ़ा था ।' राजा का मन ग्लानि से भर गया । उसे अपनी मूर्खता पर दुःख होने लगा। उसने कहा - 'आयुर्वेद की पुनः स्थापना करें। सारे ग्रन्थों का संग्रह किया जाए।' आस्था का पुनर्निर्माण हो गया । अनुभव : आस्था निर्माण का आधार आस्था का निर्माण महत्त्वपूर्ण तत्त्व है । आस्था का निर्माण भाषणों, प्रवचनों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003126
Book TitleAppanam Saranam Gacchhami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size15 MB
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