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प्रेक्षा एक पद्धति है शारीरिक स्वास्थ्य की ४७
पराजित हो गया। इच्छा आकांक्षा में बदली। दूत भेजा। उसके अपमान को देखा-सुना। आकांक्षा संकल्प में बदली और युद्ध प्रारंभ हो गया। प्रेक्षा : विपरीत प्रक्रिया
इच्छा से आकांक्षा और आकांक्षा से संकल्प दृढ़ होता है। जब संकल्प दृढ़ होता है तब कर्म प्रारंभ हो जाता है, प्रगति शुरू हो जाती है। चरित्र का परिवर्तन घटित होने लगता है। एक इच्छा पैदा होती है किन्तु जब अनेक इच्छाओं में संघर्ष होने लगता है तब बहुत कम लोग अपनी मूल इच्छा को विजयी बना पाते हैं। वे उस संषर्घ में शिथिल होकर पराजित हो जाते हैं। आदमी चरित्रवान्
और प्रामाणिक बने रहने की इच्छा रखता है। परन्तु जब वह अचरित्रवान् व्यक्ति के वैभव और सुख-सुविधाओं को देखता है तब चरित्रवान् बने रहने की इच्छा पराजित हो जाती है और अनैतिक होकर बड़ा आदमी बनने की इच्छा विजयी बन जाती है। एक प्रश्न होता है कि व्यक्ति चाहते हुए भी नैतिक या चरित्रवान क्यों नहीं बनता? इसका समाधान यह है कि इच्छाओं के इस जगत् में जब तक व्यक्ति अपनी इच्छाओं को विजयी नहीं बना देता, तब तक चरित्रवान् होने की आकांक्षा पैदा नहीं होती। जब आकांक्षा उत्पन्न नहीं होती तब संकल्प पैदा नहीं होता और संकल्प के बिना सफलता नहीं मिलती । यह सारा इसलिए होता है कि व्यक्ति की दृष्टि केवल प्रियता और अप्रियता के साथ जुड़ी हुई है। उससे परे की बात वह सोच ही नहीं सकता। इस द्वन्द्व (प्रियता और अप्रियता) से परे गए बिना परिवर्तन घटित नहीं होता। अब प्रश्न यह शेष रहता है कि इस द्वन्द्व से परे की दृष्टि का निर्माण कैसे किया जाए? हमने व्याधि, आधि और उपाधि को मिटाने की चर्चा की। पर ये कैसे मिटे? क्या प्रेक्षा-ध्यान व्याधि मिटाने की पद्धति है? हां, यह व्याधि को मिटाने की प्रक्रिया है, किन्तु है उल्टी प्रक्रिया। डॉक्टर रोग की दवा देता है। प्रेक्षा-ध्यान के द्वारा रोग की दवा नहीं दी जाती। उपाधि को मिटाने की दवा दी जाती है। उपाधि की दवा से आधियां मिटती हैं, आधि मिटती है इसलिए व्याधि मिटती है। यह विपरीत प्रक्रिया है। एक रोग : एक दवा
प्राकृतिक चिकित्सा में एक रोग और एक दवा है। पेट में विजातीय तत्त्व का संचय होना, यही एकमात्र रोग है। उसका निष्कासन करना, यही एकमात्र दवा है, इसके सिवाय न कोई रोग है और न कोई दवा।
ध्यान-पद्धति में भी यह कहा जा सकता है कि एक ही बीमारी है। वह है-मूर्छा। इसकी एक ही दवा है। वह है-जागृति।
प्रश्न यह होता है कि जागृति कैसे प्राप्त होती है? ध्यान से जागृति पैदा होती है। ध्यान के प्रति आकर्षण हो, यह आवश्यक है। ध्यान के प्रति आस्था
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