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________________ ६. प्रेक्षा एक पद्धति है शारीरिक स्वास्थ्य की एक कन्या ने अपने पिता से कहा - 'मैं किसी पुरातत्त्वविद् से विवाह करना चाहती हूं।' पिता ने पूछा- 'क्यों?' कन्या बोली- 'पिताजी! पुरातत्त्वविद् ही एक ऐसा व्यक्ति होता है जो पुरानी चीजों को ज्यादा मूल्य देता है । मैं भी ज्यों-ज्यों पुरानी होती जाऊंगी, बूढ़ी होती जाऊंगी, मेरा मूल्य भी बढ़ता जाएगा । वह मेरे से नफरत भी नहीं करेगा। वह यह नहीं देखता कि वस्तु कितनी सुन्दर है, कितनी असुन्दर है । वह इतना देखता है कि वस्तु कितनी पुरानी है । यह उसके मूल्यांकन की दृष्टि होती है ।" मूल्यांकन का अपना-अपना दृष्टिकोण होता है। मूल्यांकन का हमारा भी एक दृष्टिकोण है। अध्यात्म की साधना करने वाले व्यक्ति का अपना एक दृष्टिकोण होता है मूल्यांकन का और वह उसका स्वयं का दृष्टिकोण होता है, किसी से उधार लिया हुआ नहीं। उसका दृष्टिकोण है-दृष्टि बदले, चरित्र बदले । वह पुराना ही न रहे, नया बने । पुरानेपन का आग्रह छूटे। साधना में पुरातत्त्वविद् की दृष्टि काम नहीं देती। वहां नयेपन का आयाम खुलता है और सदा नया बना रहने की आकांक्षा बनी रहती है । अहं अर्ह बने प्रत्येक समझदार आदमी का प्रयत्न सप्रयोजन होता है। ध्यान की साधना करने वाले व्यक्ति का साध्य है-रूपान्तरण । दृष्टि का रूपान्तरण, चरित्र का रूपान्तरण । ‘अहं' को 'अर्हम्' में बदलना । अहं और अर्हम् में केवल ऊर्ध्व रेफ का अन्तर है, एक मात्रा का अन्तर है । साधक अहं को छोड़कर अर्हं बनना चाहता है । यह एक छोटी-सी यात्रा है। एक मात्रा का अर्जन करना है । अहम् पर ऊर्ध्व रेफ लगे, ऐसा प्रयत्न करना है। आधी मात्रा को प्राप्त करना है । इतना होने से यात्रा सम्पन्न हो जाती है । साधना सफल हो जाती है। ध्यान के साधक की जितनी छोटी यात्रा होती है उतनी छोटी यात्रा और किसी की नहीं होती । तादात्म्य नहीं, अभिव्यक्ति प्रेक्षा- ध्यान प्रारंभ करते समय हम प्रतिदिन अर्हं की यात्रा करते हैं । यह इसलिए कि अर्हम् हमारा साध्य है । हम अर्हम् होना चाहते हैं, अहं से मुक्त होना चाहते हैं । यह आत्मा की उपलब्धि का उपाय है। आत्मा अमूर्त है, अनाकार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003126
Book TitleAppanam Saranam Gacchhami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size15 MB
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