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________________ क्या आदतें बदली जा सकती हैं? ३१ को स्वयं के अस्तित्व पर टिका देता है, अपनी आस्था पर टिका देता है, फिर शिष्य कुछ भी पढ़े, कोई खतरा नहीं है। आज के व्यक्ति में भटकाव बहुत है। सामने अनेक आकर्षण है। वह किसे ग्रहण करे? इस निर्णय से भी यह निर्णय महत्त्वपूर्ण है कि साधक को अपने-आप पर भरोसा है या नहीं. अपने अस्तित्व पर भरोसा है या नहीं? यदि स्वयं पर आस्था है तो सब कुछ है। फिर आदमी कहीं जाए, किसी के पास रहे, किसी की उपासना करे, कोई खतरा नहीं है। जो व्यक्ति शिविर में अभ्यास करते हैं वे इस आस्था के आधार पर ही साधना करते हैं। उन्हें अपने आप पर आस्था और विश्वास है। वे अपने आपको खोज रहे हैं। अपने आपको पाने का प्रयत्न कर रहे हैं। साधना की प्राथमिक आवश्यकता है अपने आपको देखना। देखना बहुत जरूरी है। बहुत लोग ऐसे होते हैं जो बीमार होते हुए भी अपने आपको बीमार नहीं मानते। कैंसर का इलाज न होने का एक कारण यह भी है कि कैंसर जब प्रारम्भ होता है तब रोगी को पता ही नहीं रहता कि उसके कोई रोग है। जब उसे पता चलता है तब तक रोग पक जाता है। वह अचिकित्स्य हो जाता है। ध्यान ही उसकी एकमात्र चिकित्सा है। उपाधि : बड़ी बीमारी ___ सबसे बड़ी बीमारी है-उपाधि । उपाधि का अर्थ है-कषाय। यह केवल बीमारी ही नहीं, दूसरी बीमारियों को उत्पन्न करने वाली बीमारी है। जिन लोगों ने यह जान लिया वे अपनी खोज में चल पड़े, उनके लिए केवल अपनी खोज ही सब कुछ है। लोग एक प्रश्न करते हैं कि आज जितना आकर्षण भौतिकता के प्रति है, उतना आकर्षण अध्यात्म के प्रति नहीं है। चाहे कोई कितना ही प्रयत्न करे, आकर्षण की इस द्विविधता को मिटाया नहीं जा सकता। दो चीजें हैं। एक है सिनेमाघर और दूसरी है अस्पताल। जितना आकर्षण सिनेमा के प्रति है उतना आकर्षण अस्पताल के प्रति नहीं है। सिनेमा में सब जाते हैं, अस्पताल में केवल रोगी ही जाता है। एक एक्टर को देखने के लिए जितनी भीड़ उमड़ती है उतनी भीड़ एक डॉक्टर को देखने के लिए नहीं उमड़ती। ध्यान के शिविर में वही आता है जो यह जानता है कि मैं बीमार हूं, मुझे अपनी बीमारी मिटानी है। जो अपने आपको स्वस्थ मानता है, वह कभी शिविर में नहीं आएगा। चार प्रकार के उपासक गीता में कृष्ण कहते हैं--'चार प्रकार के व्यक्ति मेरी भक्ति करते हैं-आर्त, जिज्ञासु, ज्ञानी और अर्थार्थी।' आदमी जब दुःखी होता है तब मेरी भक्ति करता है। जब तक उसे कोई पीड़ा नहीं सताती वह मुझे कभी याद नहीं करता। आम्रपाली अपने समय की प्रसिद्ध नर्तकी थी। उसने एक बार बुद्ध से Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003126
Book TitleAppanam Saranam Gacchhami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size15 MB
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