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________________ ३४२ अप्पाणं सरणं गच्छामि है। यह इसीलिए कि उसमें करुणा का सागर हिलोरें ले रहा है। वह चाहता है कि सारे मनुष्य उस प्रकाश को पाकर शान्ति का अनुभव करें, आनन्द का अनुभव करें। समय और समय ‘समय नहीं है, यह तभी कहा जाता है जब तक व्यक्ति इस क्षेत्र में प्रवेश नहीं कर लेता। एक बार भी जिस व्यक्ति ने ध्यान के आनन्द का अनुभव कर लिया, वह फिर उस कारा से मुक्त नही हो सकता। इस पिंजरे में फंसने वाला व्यक्ति बाहर जाना नहीं चाहता। पिंजरे का दरवाजा चाहे खुला ही क्यों न रहे, वह उड़ेगा नहीं। वह उस आनन्द को छोड़ना नहीं चाहेगा। जो व्यक्ति अन्तर्-जगत् की थोड़ी भी झांकी पा लेता है, उसके पास अध्यात्म के लिए समय ही समय है। जब तक यह झांकी उपलब्ध नहीं होती, तब तक उस समय के अभाव की बात आदमी कहता चला जाता है। जब तक आदमी घरेलू झंझटों में फंसा रहता है तब तक लगता है कौन शिविर में जाकर कैद भोगे । न खाने-पीने की स्वतन्त्रता और न घूमने-फिरने की स्वतन्त्रता। बड़ा ही अटपटा जीवन होता है शिविर का। किन्तु जब व्यक्ति एक बार आ जाता है, फिर यहां से जाते उसे कठिनाई महसूस होती है। जो व्यक्ति अपने आन्तरिक जीवन की झलक पा लेता है, उसके जीवन का समूचा क्रम ही बदल जाता है। किन्तु जो कभी इस जीवन का अनुभव ही नहीं करता, वह सदा डरता रहता है। अन्तर्जगत् का जीवन घर का जीवन है। बहिर्जगत् का जीवन सड़क का जीवन है। बहिर्जगत् का जीवन संतापों का जीवन है और अन्तर्जगत् का जीवन आनन्द का जीवन है। जो एक बार भी अन्तर्यात्रा कर लेता है, उसे जीवन की समस्याओं को सुलझाने का मार्ग प्राप्त हो जाता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003126
Book TitleAppanam Saranam Gacchhami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size15 MB
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