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________________ आन्तरिक समस्याएं और तनाव ३३६ दृढमूल बन जाती है, उसके लिए स्वास्थ्य का प्रश्न ही समाप्त हो जाता है। राजस्थानी में एक कहावत है-जो रोतो-रोतो ज्यावै, वो मर्योडारी खबर ल्यावै-जो रोते-रोते जाता है वह मरे हुए की खबर ले आता है। जो व्यक्ति प्रारम्भ से ही हीन-भावना से ग्रस्त होता है, वह बड़ा काम नहीं कर सकता। सफलता का पहला सूत्र है-अपनी आन्तरिक शक्तियों का अनुभव होना, उन पर विश्वास होना, अन्तर्-जगत् से परिचित होना। शरीर-विज्ञान-सब के लिए __ एक डॉक्टर के लिए शरीर से परिचित होना बहुत जरूरी है। एक ध्यान-साधक के लिए भी उसे जानना बहुत जरूरी है। एक फिजियोलोजिस्ट के लिए शरीर की संरचना और उसके फंक्शन को जानना नितान्त आवश्यक होता है। वह उन्हें जानता है और अनेक निष्कर्ष निकालता है। एक ध्यान-साधक के लिए भी शरीर की संरचना और क्रिया-विधि को जानना तो आवश्यक है ही, साथ ही साथ उससे आगे अन्तःस्रावी ग्रन्थियों के स्रावों को जानना, वे व्यक्ति की वृत्तियों को किस प्रकार प्रभावित करती हैं उसे जानना, किस प्रकार कषायों को उत्तेजित करती हैं उसे जानना भी बहुत जरूरी हो जाता है। आवेगों का मूल : ग्रन्थिस्त्राव यह माना जाता है कि आदमी समाज के संपर्क में क्रोध, अहंकार, माया, लोभ, उत्तेजना करना सीखता है, वासनाओं को जन्म देता है। यह सचाई है, पर अधूरी है, पूरी नहीं। वह समाज के संपर्क में सीखता है, समाज में प्रकट करता है, किन्तु प्रकट करने का जो मूल कारण है वह समाज के संपर्क में नहीं आता। वह कारण अपने भीतर में है। वह कारण है-ग्रन्थियों का स्राव । यदि एड्रीनल ग्रन्थि को पिच्यूटरी ग्रन्थि से प्रभावित कर दिया जाए तो भयंकर से भयंकर परिस्थिति आने पर व्यक्ति का मन दूषित नहीं होता। चंडकौशिक सर्प भगवान् महावीर को डस रहा है। यह क्रोध उत्पन्न होने की स्थिति है। पर भगवान महावीर की आंखों से करुणा की धारा बरस रही है। ऐसा क्यों? इसका कारण है कि भगवान् महावीर में वह तत्त्व ही समाप्त हो गया जो कषायों और वृत्तियों को उत्तेजित करने वाला था। जब स्राव ही बदल गया तो क्रोध कैसे आए? महाराष्ट्र के एक महान् सन्त थे-एकनाथ। वे नदी से स्नान कर आ रहे थे। एक झरोखे के नीचे से गुजरना पड़ता था। ऊपर एक व्यक्ति बैठा था। उसने एकनाथ पर थूक दिया। एकनाथ पुनः स्नान करने नदी की ओर लौट गए। स्नान कर वापस आए। उस व्यक्ति ने पुनः थूक डाला। एकनाथ पुनः स्नान करने चले गए। इक्कीस बार ऐसा हुआ। पर उनको उत्तेजना नहीं आयी। वे शान्त बने रहे। अन्त में वह व्यक्ति नीचे उतरा और एकनाथ के चरणों में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003126
Book TitleAppanam Saranam Gacchhami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size15 MB
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