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________________ अप्पाणं सरणं गच्छामि ३३३ जाए। चिन्ता करने से क्या? बिना मौत क्यों मरा जाए? जिस व्यक्ति ने प्राण-शक्ति का मूल्यांकन नहीं किया, जिसकी प्राण-शक्ति निर्बल है वह हजारों-हजारों आशंकाएं, कल्पनाएं और दुश्चिन्ताएं खड़ी कर लेता है और उन्हीं को भोगते-भोगते समाप्त हो जाता है। वह जीवन में कुछ भी नहीं कर पाता। जिसकी प्राण-ऊर्जा सबल होती है, जो प्राणवान् होता है, जिसमें धृति और मनोबल होता है, उसके जीवन में बड़ी-बड़ी समस्याएं आती हैं, पर वे उसे प्रभावित नहीं कर पातीं, स्वयं नष्ट हो जाती हैं, जेसे आती हैं, वैसे ही चुपचाप चली जाती हैं। कहा है तावद् भयेन भेतव्यं, यावद् भयमनागतम्। आगतं तु भयं दृष्ट्वा , प्रहरतव्यमशंकया।। जब भय की स्थिति आ गई हो तो उससे डरना नहीं चाहिए। पहले यह विवेक अवश्य रखना चाहिए कि कोई खतरा सहसा उत्पन्न न हो। परन्तु जब खतरा पैदा हो ही गया तो व्यक्ति की प्राण-ऊर्जा इतनी सशक्त होनी चाहिए कि वह निडर होकर उस खतरे का सामना कर सके। इस प्रकार करने से खतरा आता है और चला जाता है, व्यक्ति का कुछ भी नहीं बिगाड़ पाता। दुनिया में सब उसे सताते हैं जो कमजोर होता है, सशक्त को कोई नहीं सताता। एक भाई ने पूछा- 'हम प्रेक्षा-ध्यान में देखने का अभ्यास कर रहे हैं। इस प्रक्रिया में हमारी चिन्तन-शक्ति ही समाप्त न हो जाए। हमने चिन्तन को ही सब कुछ मान लिया है। चिन्तन बहुत छोटी बात है। इसे हमने अधिक मूल्य दे डाला। इसे ही जीवन का सर्वस्व मान लिया। कहां चिन्तन और कहां दर्शन! बेचारा चिन्तन इतना पंगु है कि वह दर्शन के ऊंचे शिखर तक पहुंच ही नहीं सकता, उसकी तलहटी को भी नहीं छू पाता। विशिष्ट ज्ञान दर्शन (इन्ट्यूसन) के द्वारा होता है। जब जीवन में दर्शन और उसके साथ-साथ प्राण-ऊर्जा के उन्नयन की बात आती है तब चिन्तन पीछा करता हुआ चला जाता है। जहां चेतना जाती है वहां प्राण-धारा जाती है। जो व्यक्ति चेतना को देखने का प्रयत्न करता है, वह प्राण-शक्ति को विकसित करने का प्रयास करता है। जो व्यक्ति चैतन्य को देखने का प्रयत्न नहीं करता, उसकी प्राण-शक्ति चुक जाती है। हम इस सचाई को मानकर चलें कि सन्देह, आशंका और भय के कारण पैदा होने वाली जितनी काल्पनिक समस्याएं हैं, वे सब मन में तनाव उत्पन्न करती हैं और तनाव हजारों कठिनाइयां पैदा करता है। हम काल्पनिक समस्याओं में न उलझें, और प्राण-ऊर्जा को अधिक से अधिक विकसित करने की दिशा में प्रस्थान करें। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003126
Book TitleAppanam Saranam Gacchhami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size15 MB
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