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________________ ३४. काल्पनिक समस्याएं और तनाव मनुष्य बहुत बार कल्पना के जगत् में जीता है। कल्पना अच्छी भी है और बुरी भी है। जो कल्पना यथार्थ तक पहुंच जाए वह अच्छी है और जो कल्पना केवल कल्पना ही बनी रहे, यथार्थ के आकाश को छू न पाए; वह बुरी है। मनुष्य जितनी कल्पनाएं करता है उतना ही वह उनसे ग्रस्त होता जाता है। स्मृति भी जरूरी है और कल्पना भी जरूरी है, किन्तु अतिस्मृति और अतिकल्पना-दोनों खतरनाक हैं। पता नहीं, मनुष्य को अति में जाना पसन्द क्यों है? वह किसी भी पक्ष में अति से क्यों नहीं बच पाता? वह हर बात में अति करता है, करना चाहता है। मन में एक प्रकार की मूर्छा के कारण वह संयम नहीं कर पाता। संयम का अर्थ है-अति से बचना। यह जीवन का महत्त्वपूर्ण सूत्र है। भोजन का संयम करना-इसका यह अर्थ नहीं है कि भोजन न किया जाए। भोजन के बिना प्राण नहीं टिकते। भोजन के बिना जीवन-यात्रा नहीं चल सकती। भोजन जरूरी है, किन्तु जब उसकी अति होती है, तब समस्याएं उत्पन्न होती हैं। भोजन-संयम का अर्थ है-भोजन की अति से बचना । शरीरधारी काम का भी सेवन करता है। इच्छाओं की पूर्ति भी करता है। शरीर और मन की आकांक्षाओं की पूर्ति के लिए वह हर संभव प्रयत्न भी करता है। किन्तु जीवन के किसी भी क्षेत्र में जहां अति का प्रयोग होता है वहां कठिनाइयां पैदा होती हैं। कामवृत्ति : कोणिक सचाई मानसशास्त्री मानते हैं कि जीवन में काम (sex) आवश्यक है। फ्रायड ने इसका बहुत समर्थन किया। सभी मनोवैज्ञानिकों ने इसकी आवश्यकता महसूस की है। 'काम' मनुष्य की स्वाभाविक वृत्ति है। उसकी पूर्ति नहीं होती है तो आदमी पागल हो जाता है। बहुत बार यह प्रश्न आता है कि मनुष्य यदि ब्रह्मचारी बना रहे तो वह पागल हो जाएगा। इस बात में सचाई नहीं है, ऐसा नहीं कहा जा सकता। जीवन की स्वाभाविक मांगों की यदि पूर्ति नहीं होती है तो एक प्रकार का उन्माद या पागलपन उत्पन्न हो जाता है और आदमी बेचैन हो जाता है। हर सचाई का एक कोण होता है। ये प्रतिपादित सचाइयां कोणिक सचाइयां हैं। ये सार्वभौम नहीं हैं। बहुत बार आदमी अर्धसत्य को पूर्णसत्य मान लेता है। यहां भ्रांति का निर्माण हो जाता है। अर्धसत्य को यदि अर्धसत्य की दृष्टि से देखा जाए तो समस्या को सोचने-समझने का और उसका Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003126
Book TitleAppanam Saranam Gacchhami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size15 MB
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