SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 327
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३३. अप्पाणं सरणं गच्छामि एक भाई ने कहा-हम प्रतिदिन इस सूत्र को दोहराते हैं-अरहते सरणं पवज्जामि, सिद्धे सरणं पवज्जामि-मैं अर्हत् की शरण में जाता हूं, मैं सिद्ध की शरण में जाता हूं।' हम दूसरों की शरण में क्यों जाएं? जब सब कुछ पुरुषार्थ के द्वारा उपलब्ध होता है तब दूसरों की शरण क्यों? जो दूसरों की शरण में जाता है उसे कुछ भी उपलब्ध नहीं होता। जो अपनी शरण में जाता है वह सब कुछ पा लेता है। अर्हत् की शरण में जाना, सिद्ध की शरण में जाना, साधु की शरण में जाना और धर्म की शरण में जाना, किसी दूसरे की शरण में जाना नहीं है, यथार्थ में वह अपनी ही शरण में जाना है। कोई व्यक्ति कहता है-'सत्यं शरणं गच्छामि', मैं सत्य की शरण में जाता हूं। सत्य की शरण में जाना अपने आपकी शरण में जाना है। आत्मा की शरण में जाना, सत्य की शरण में जाना और अर्हत् की शरण में जाना एक ही बात अर्हत् वह होता है जिसकी सारी अर्हताएं व्यक्त हो जाती हैं। कोई भी अर्हता छिपी नहीं रहती। हर आत्मा में अनन्त अर्हताएं हैं। जिसकी सारी अर्हता, क्षमता, योग्यता या शक्ति अभिव्यक्त हो जाती है वह अर्हत् बन जाता है। अर्हत् की शरण में जाने वाला अपनी आत्मा की योग्यता की शरण में जाता है, अपनी शक्ति की शरण में जाता है। शक्ति -परिचय ___ व्यक्ति को अपनी शक्ति का ज्ञान नहीं होता। यह सबसे बड़ा आश्चर्य है। वे शक्तियां छिपी हुई रह जाती हैं। कोई भी व्यक्ति ऐसा नहीं है, जिसमें शक्तियां न हों। बहुत कम लोग ऐसे हैं जिन्हें अपनी शक्तियों का भान हो। बहुत कम लोग ऐसे हैं जो अपनी शक्तियों का पूरा सहयोग करते हों। मनोविज्ञान कहता है कि आदमी अपने मस्तिष्कीय शक्ति का केवल पन्द्रह प्रतिशत भाग ही उपयोग में ले पाता है, शेष पचासी प्रतिशत भाग सुप्त ही रह जाता है। वह जागृत ही नहीं होता। हमारे शरीर में भी बहुत शक्तियां हैं, पर उनका भी पूरा उपयोग नहीं हो पाता । प्रत्येक व्यक्ति अपनी शारीरिक शक्ति का जितना उपयोग करता है और जिसे नॉर्मल शक्ति माना जाता है, उससे सात गुना अधिक शक्ति उसमें सदा संचित रहती है, किन्तु वह कभी उसका पूरा उपयोग नहीं कर पाता। जब शक्ति क्षीण हो जाती है तब कभी-कभी वह काम में आती Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003126
Book TitleAppanam Saranam Gacchhami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy